रंग बदलते इन्सानों को देखा है
इस दुनिया में मतलब का हर रिश्ता है
शह्र नहीं यह जंगल है और जंगल में
सारे वक़्त कलेजा मुंह को आता है
काला नाग जकड़ लेता है सूरज को
उसकी जकड़न से वो कैसे उभरा है
उसको पूजने वाले कैसे कैसे लोग
वो जो वक़्त पे चलने वाला सिक्का है
मैं तो उस पर अपनी जान छिड़कता हूं
उसका तीखा लहजा सबसे प्यारा है
छीन लिया करता है सारी चहकारें
जो भी पेड़ परिंदे पर आ गिरता है
प्रेमकिरन तुम बेशक अच्छे शाइर हो
लेकिन अच्छा इतना ही कब होता है
लेखक
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प्रेमकिरण प्रकाशन- 'आग चखकर लीजिए', 'पिनकुशन', 'तिलिस्म टूटेगा' (हिन्दी ग़ज़ल संग्रह), ज़ह्राब (उर्दू ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशित। ग़ज़ल एवं कविता के विभिन्न साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित। इनके अतिरिक्त हिन्दी एवं उर्दू की पत्रिकाओं में ग़ज़ल कविता, कहानी, फीचर, साक्षात्कार, पुस्तक समीक्षा, कला समीक्षा, साहित्यिक आलेख प्रकाशित। संपादन: समय सुरभि ग़ज़ल विशेषांक । अनुवाद प्रसारण: नेपाली एवं बंगला भाषा में ग़ज़लों का अनुवाद। सम्मान: डॉ. मुरलीधर श्रीवास्तव 'शेखर' सम्मान से सम्मानित (2005)। दुष्यंत कुमार शिखर सम्मान से सम्मानित (2006)। शाद अजीमाबादी सम्मान (2007)। बिहार उर्दू अकादमी द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित (2009) प्रसारण: दूरदर्शन, आकाशवाणी, पटना के हिन्दी एवं उर्दू विभाग से कविता, कहानी एवं ग़ज़लें प्रसारित तथा अनेक अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में शिरकत । संपर्क: कमला कुंज, गुलज़ारबाग, पटना-800007 मो. : +91-9334317153 ई-मेल : premkiran2010@gmail.com
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