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फ़स्लें तमाम लूट के सैलाब ले गया/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

फ़स्लें तमाम लूट के सैलाब ले गया
देकर अज़ाब जीने का असबाब ले गया

उसको ख़बर नहीं कि वो शुह्रत के ज़ोम में
आंखों से शह्रे-गिरिया के सब ख़्वाब ले गया

हमको था नाख़ुदा पे भरोसा बहुत मगर
कश्ती हमारी जानिबे-गिर्दाब ले गया

इक जलपरी से इश्क़ का अंजाम ये हुआ
बेताब दिल हमारा तहे-आब ले गया

बाक़ी बची न मुझमें बग़ावत की आरज़ू
सूरज बदन निचोड़ के सब ताब ले गया

हिर्सो-हवस के दश्त में तूफ़ान क्या उठा
पल भर में सारे शह्र के आदाब ले गया

कितना अमीर हो गया मां की दुआ से वो
पलकों से उसकी मोती जो नायाब ले गया

लेखक

  • प्रेमकिरण

    प्रेमकिरण प्रकाशन- 'आग चखकर लीजिए', 'पिनकुशन', 'तिलिस्म टूटेगा' (हिन्दी ग़ज़ल संग्रह), ज़ह्राब (उर्दू ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशित। ग़ज़ल एवं कविता के विभिन्न साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित। इनके अतिरिक्त हिन्दी एवं उर्दू की पत्रिकाओं में ग़ज़ल कविता, कहानी, फीचर, साक्षात्कार, पुस्तक समीक्षा, कला समीक्षा, साहित्यिक आलेख प्रकाशित। संपादन: समय सुरभि ग़ज़ल विशेषांक । अनुवाद प्रसारण: नेपाली एवं बंगला भाषा में ग़ज़लों का अनुवाद। सम्मान: डॉ. मुरलीधर श्रीवास्तव 'शेखर' सम्मान से सम्मानित (2005)। दुष्यंत कुमार शिखर सम्मान से सम्मानित (2006)। शाद अजीमाबादी सम्मान (2007)। बिहार उर्दू अकादमी द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित (2009) प्रसारण: दूरदर्शन, आकाशवाणी, पटना के हिन्दी एवं उर्दू विभाग से कविता, कहानी एवं ग़ज़लें प्रसारित तथा अनेक अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में शिरकत । संपर्क: कमला कुंज, गुलज़ारबाग, पटना-800007 मो. : +91-9334317153 ई-मेल : premkiran2010@gmail.com

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