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पहली पहली बार हमारे घर आंगन में उतरा चांद/ग़ज़ल/प्रेमकिरण

पहली पहली बार हमारे घर आंगन में उतरा चांद
रात गये तक जाग के हमने टुकड़ा टुकड़ा देखा चांद

दिन भर की सारी थकन को पल भर में हम भूल गये
घर आते ही दौड़ के लिपटा पापा…पापा कहता चांद

दुख की रातें काट रही है बुढ़िया बैठी चरखे पर
उसके आंसू बिखरे तारे दादी मां क़िस्सा चांद

घोर अमावस की रातों में कब से प्यासा एक चकोर
सहरा सहरा जंगल जंगल ढूंढ़ रहा है बिछड़ा चांद

मेहनतकश की मेहनत है कितना रौशन कितना मोहक
जमुना तट से देख रहा है ताजमहल को हंसता चांद

जिनके पेट भरे हैं उनको चाहे जैसा लगता हो
भूखा बच्चा देख के मचला रोटी जैसा पूरा चांद

कौन सुने दुख दर्द किरन का किसको फ़ुर्सत बैठे पास
सबकी अपनीअपनी दुनिया,सबका अपनाअपना चांद

लेखक

  • प्रेमकिरण प्रकाशन- 'आग चखकर लीजिए', 'पिनकुशन', 'तिलिस्म टूटेगा' (हिन्दी ग़ज़ल संग्रह), ज़ह्राब (उर्दू ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशित। ग़ज़ल एवं कविता के विभिन्न साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित। इनके अतिरिक्त हिन्दी एवं उर्दू की पत्रिकाओं में ग़ज़ल कविता, कहानी, फीचर, साक्षात्कार, पुस्तक समीक्षा, कला समीक्षा, साहित्यिक आलेख प्रकाशित। संपादन: समय सुरभि ग़ज़ल विशेषांक । अनुवाद प्रसारण: नेपाली एवं बंगला भाषा में ग़ज़लों का अनुवाद। सम्मान: डॉ. मुरलीधर श्रीवास्तव 'शेखर' सम्मान से सम्मानित (2005)। दुष्यंत कुमार शिखर सम्मान से सम्मानित (2006)। शाद अजीमाबादी सम्मान (2007)। बिहार उर्दू अकादमी द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित (2009) प्रसारण: दूरदर्शन, आकाशवाणी, पटना के हिन्दी एवं उर्दू विभाग से कविता, कहानी एवं ग़ज़लें प्रसारित तथा अनेक अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में शिरकत । संपर्क: कमला कुंज, गुलज़ारबाग, पटना-800007 मो. : +91-9334317153 ई-मेल : premkiran2010@gmail.com

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