थी न हिम्मत ही तो पर क्या करते
हम हवाओं में सफर क्या करते
लोग ले कर चले आते हैं नमक
कहिए जख्मों की खबर क्या करते
लत गुहर की न लहर की ही रही
तो समंदर में उतर क्या करते
दीद का है न जुनून अब कोई
देख कर बंद वो दर क्या करते
नाम पे घर के हैं दीवारें बचीं
वक़्त पर जा के भी घर क्या करते
जानते हैं न चुनेगा कोई
फूल भी शाखों से झर क्या करते
दाग़ किरदार के मिटते हैं कहाँ
हम अधिक और सुधर क्या करते
थी न हिम्मत ही तो पर क्या करते/ग़ज़ल/अंजू केशव