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ज़िंदगी नें आजमाया है बहुत /ग़ज़ल/अंजू केशव

ज़िंदगी नें आजमाया है बहुत
सब्र नें भी पर बचाया है बहुत
है जवाबों का थकन से चूर तन
सर सवालों नें उठाया है बहुत
एक मौक़ा हम थे सबके वास्ते
और सबने ही भुनाया है बहुत
आज पैरों पर खड़ा है हौसला
ये भी लेकिन लड़खड़ाया है बहुत
पूछते हैं लोग जब क्या हाल है
तो ये लगता है कमाया है बहुत
पेड़ पर अब फल नहीं लगते तो क्या
धूप से बचने को साया है बहुत
हम न भूले हैं न भूलेंगे कभी
ज़िंदगी! तेरा बक़ाया है बहुत

लेखक

  • अंजू केशव

    अंजू केशव जन्म - 24 अप्रैल, निवास - जमशेदपुर प्रकाशन - सन्नाटे में शोर बहुत है (ग़ज़ल संग्रह), विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित

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ज़िंदगी नें आजमाया है बहुत /ग़ज़ल/अंजू केशव

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