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कोई है साथ पर साथी नहीं है/ग़ज़ल/अंजू केशव

कोई है साथ पर साथी नहीं है
दिल ऐसे रिश्तों का क़ैदी नहीं है
भले ही आप नावाकिफ हों खुद से
मुझे कोई गलतफहमी नहीं है
थकन है सो उतर जाएगी जल्दी
मगर हिम्मत अभी हारी नहीं है
किसी की जान का क्या रब्त इससे
किसी के माथे पर बिंदी नहीं है
दुबारा स्नेह माँ वाला है दुर्लभ
अगर घर में कोई बेटी नहीं है
बचाना ख़ुद को मेरे आँसुओं से
ये केवल आँख का पानी नहीं है
बने रहना सदा अपनी नज़र में
कि इसके बाद कुछ बाक़ी नहीं है

लेखक

  • अंजू केशव

    अंजू केशव जन्म - 24 अप्रैल, निवास - जमशेदपुर प्रकाशन - सन्नाटे में शोर बहुत है (ग़ज़ल संग्रह), विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित

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कोई है साथ पर साथी नहीं है/ग़ज़ल/अंजू केशव

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