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जाते जाते वो निशानी दे गया/गज़ल/संजीव प्रभाकर

जाते जाते वो निशानी दे गया,

अनकही उलझी कहानी दे गया।

बंद दरवाजे दरीचे खिड़कियाँ,

किस कदर यादें पुरानी दे गया।

ख्वाहिशें उसकी हमेशा खुश रहूँ,

सूखती आँखों में पानी दे गया।

बाजियाँ हमने लगा दी जान की,

शौक से वो भी जवानी दे गया।

इंतजारे-वक़्त में ठहरी हुई,

ज़िन्दगी को इक रवानी दे गया।

लेखक

  • संजीव प्रभाकर

    संजीव प्रभाकर जन्म : 03 फरवरी 1980 शिक्षा: एम बी ए एक ग़ज़ल संग्रह ‘ये और बात है’ प्रकाशित और अमन चाँदपुरी पुरस्कार 2022 से पुरस्कृत आकाशवाणी अहमदबाद और वडोदरा से ग़ज़लों का प्रसारण भारतीय वायुसेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त सम्पर्क: एस-4, सुरभि - 208 , सेक्टर : 29 गाँधीनगर 382021 (गुजरात) ईमेल: sanjeevprabhakar2010@gmail.com मोब: 9082136889 / 9427775696

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