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आईन है, कानून है इस बात से मश्कूर हूँ/गज़ल/संजीव प्रभाकर

आईन है, कानून है इस बात से मश्कूर हूँ,

क्या फ़ायदा इसका मगर, इंसाफ़ से मै दूर हूँ!

भूखा कहो,  नंगा कहो , दुत्कार दो, धिक्कार दो,

मज़लूम मै बेशक मगर , ख़ुद्दार हूँ,  मज़दूर हूँ।

मौके कई आये मगर, एक-एक कर जाने दिया,

बेइन्तिहाँ बेफ़िक्र हूँ ,  मै आदतन मजबूर हूँ।

इंसानियत, रस्म-ए-वफ़ा, रहबानीयत, रहम-ओ-करम,

जाइज़ रहा मै  अब नहीं, भूला हुआ दस्तूर हूँ।

मनमर्ज़ियाँ, ग़ुस्ताखियाँ या बेसबब  जद्दोजहद,

कुछ तो किया होगा कभी, यूँ ही नहीं  मशहूर हूँ।

लेखक

  • संजीव प्रभाकर

    संजीव प्रभाकर जन्म : 03 फरवरी 1980 शिक्षा: एम बी ए एक ग़ज़ल संग्रह ‘ये और बात है’ प्रकाशित और अमन चाँदपुरी पुरस्कार 2022 से पुरस्कृत आकाशवाणी अहमदबाद और वडोदरा से ग़ज़लों का प्रसारण भारतीय वायुसेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त सम्पर्क: एस-4, सुरभि - 208 , सेक्टर : 29 गाँधीनगर 382021 (गुजरात) ईमेल: sanjeevprabhakar2010@gmail.com मोब: 9082136889 / 9427775696

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