अपने पैरों पे जो खड़ा होगा,
उसका क़द हर जगह बड़ा होगा।
वक़्त के साथ जो न बदला वो,
धूल खाता हुआ पड़ा होगा।
मशवरा सब सहीह, बेजा है,
कोई ज़िद पे अगर अड़ा होगा।
हार उसकी हुई, तअज़्ज़ुब है!
अपने लोगों से ही लड़ा होगा।
आ रहीं आहटें क़यामत की,
पाप का भर गया घड़ा होगा।
लेखक
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संजीव प्रभाकर जन्म : 03 फरवरी 1980 शिक्षा: एम बी ए एक ग़ज़ल संग्रह ‘ये और बात है’ प्रकाशित और अमन चाँदपुरी पुरस्कार 2022 से पुरस्कृत आकाशवाणी अहमदबाद और वडोदरा से ग़ज़लों का प्रसारण भारतीय वायुसेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्त सम्पर्क: एस-4, सुरभि - 208 , सेक्टर : 29 गाँधीनगर 382021 (गुजरात) ईमेल: sanjeevprabhakar2010@gmail.com मोब: 9082136889 / 9427775696
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