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कुण्डलियां/शिवकुमार दीपक

माता मूरत प्रेम की, शुचि, सुभाषिनी,धीर ।
सभ्य,सुशील,सुधाकिनी,हरे जगत की पीर।।
हरे जगत की पीर , समाई भगवत गीता ।
कर्म, धर्म, में निष्ठ, सती , सावित्री, सीता ।।
कह ‘दीपक’ कविराय,शाप से यम घबराता ।
दुनिया का हर तीर्थ, रखे चरणों में माता ।।-1

हे माँ जननी दे मुझे , ऐसा तू आशीष ।
झुका रहे माँ उम्र भर, गुरु चरणों में शीश ।।
गुरु चरणों में शीश, रहे मन श्रद्धा पावन ।
राग द्वेष से दूर , रहे शुचि मेधा तन-मन ।।
‘दीपक’ सच के साथ, करे मानव की सेवा ।
संयम, संबल, बुद्धि,मिले जीवन भर,हे माँ ।।-2

मातृ दिवस पर यह खबर,ले आया अखबार ।
माँ को उसके पुत्र ने, दिया उसी दिन मार ।।
दिया उसी दिन मार, बहू की बातें रूखी ।
माँगा,मिला न अन्न,रही माँ दो दिन से भूखी ।।
भोजन देना दूर , मार दी लाठी कसकर ।
निकला पूत कपूत, मरी माँ मातृदिवस पर ।।-3

जन्नत, दोज़ख सब यहीं, जीवन के इस पार ।
जो बोया वो ही मिले, पग-पग कर्म सुधार ।।
पग-पग कर्म सुधार , तजो पापों की करनी ।
बैठ सत्य की नाव , पार हो भव से तरनी ।।
कह ‘दीपक’ कविराय, होंय पूरी सब मन्नत ।
कर ले अच्छे कर्म , जिंदगी होवे जन्नत ।।-4

हँसें, हँसायें आज से , रहें रोग से दूर ।
तथ्य विलक्षण एक है, टॉनिक है भरपूर ।।
टॉनिक है भरपूर ,खून की गति बढ़ जावे ।
पेट करे व्यायाम, चमक मुखड़े पर आवे ।।
कह ‘दीपक’ समझाय,योग अद्भुत करवायें ।
रहता मन में मोद, मित्रवर हँसें – हँसायें ।।-5

माखन के वे दिन कहां, कहां नंद के लाल ।
मोबाइल के लालची, आज बाल गोपाल ।।
आज बाल गोपाल, दही माखन को भूले ।
मोबाइल में गेम, गीत सुन सुनकर फूले ।।
गुटका पान पराग, शौक उनके बचपन के ।
‘दीपक’आते याद,दिवस मिश्री माखन के ।। -6

‘होरी’ आया शहर में, हुआ गांव से तंग ।
काम कोठियों में मिला, पोत रहा है रंग ।।
पोत रहा है रंग, साथ बेटा गोबर है ।
सोने को फुटपाथ, ओढ़ने को चादर है ।।
हाथ बटाती रोज, साथ पत्नी है भोरी ।
सबने पाया काम, शहर में खुश है होरी ।।-7

समता की सौहार्द की, बड़ी जरूरत आज ।
धर्म-द्वेष की आग में, जलने लगा समाज ।।
जलने लगा समाज, आग बढ़ती जाती है ।
घूम रहे बेखौफ, जिन्हें हिंसा भाती है ।।
पड़ी, संत रैदास , तुम्हारी आवश्यकता ।
हमें चाहिए प्रेम , और आपस में समता ।।-8

घर का मुखिया हो अगर,दीन-हीन कमजोर ।
या फिर दारूबाज हो , या हो सट्टाखोर ।।
या हो सट्टाखोर , कबाबी और जुआरी ।
कैसे वह परिवार, कहा जाए संस्कारी ।।
वह बेचारा पात्र , नहीं होता आदर का ।
मुखिया से माहौल, बिगड़ जाता है घर का ।।-9

तोते सारे बाग के , माली रहा उड़ाय ।
बिना पंख के बैठ कर, रहे फलों को खाय ।।
रहे फलों को खाय,न कोई उनको खटका ।
माली है बेभान, इन्हीं तोतों में अटका ।।
उजड़ेगा यह बाग, इन्हीं चोरों के होते ।
माली अब तो चेत , उड़ा मत केबल तोते ।।-10

घर आए आनंद से, मत नाहक मुख मोड़ ।
अन्न मिला है भाग्य से,थाली में मत छोड़ ।।
थाली में मत छोड़ , अन्न जीवन देता है ।
क्रोध रोष को रोक, ज्ञान को हर लेता है ।।
रहे धीर गंभीर , सही निर्णय ले पाए ।
अमन-चैन सुख-प्रेम,स्वतःउसके घर आए ।।-11

करिए हर कोशिश यही, टले रार तकरार ।
हँसी-खुशी पलती रहे, रहे दिलों में प्यार ।।
रहे दिलों में प्यार,थाम कर चलिए उंगली ।
हँसो, उठेंगीं साथ , रोइए, होगी एकली ।।
दुख देता एकांत ,जमाने का दुख हरिए ।
रहे जमाना साथ, काम ऐसे ही करिए ।।-12

सोतीं भूखी आज भी, कई करोड़ों जान ।
मगर उन्हीं के पास है, बचा हुआ ईमान ।।
बचा हुआ ईमान, और सब कुछ खोया है ।
मेहनतकश इंसान , गरीबी में रोया है ।।
संसद में भरपेट , भूख पर चर्चा होतीं ।
‘दीपक’ फिर भी देख,जिंदगी भूखी सोतीं ।।-13

रोटी कपड़ा हो न हो,ना हो भले मकान ।
खड़े धर्म के नाम पर, बंदूकों को तान ।।
बंदूकों को तान, विरुद्ध खड़े भारत के ।
गंवा रहे हैं जान, ख्वाब पाले जन्नत के ।।
‘दीपक’ पाकिस्तान,चल रहा चालें खोटी ।
बांट रहा बंदूक, नहीं खाने को रोटी ।।-14

हारा वह जिसके यहां ,था कोई गद्दार ।
घर के भेदी ने किये , घर के बंटाढार ।।
घर के बंटाढार , किए घर के लोगों ने ।
दिए उन्हींने भेद, सहे अन्याय जिन्होंने ।।
‘दीपक’ खुफिया तंत्र,जहां चौकस था सारा ।
साक्षी है इतिहास, कभी वह जंग ना हारा ।।-15

सुंदर हो मधु गंध हो,खींचे सबका ध्यान ।
माली ऐसे फूल को , देता है सम्मान ।।
देता है सम्मान, योग्यता को कोई भी ।
शोभा बनते फूल, मूर्ति मंडप अर्थी की ।।
देगा ‘दीपक’ छोड़,फूल में अगर कसर हो ।
चुना गया वह फूल, गंध जिसकी सुंदर हो।।-16

लंकापति को आज तक, मार न पाए राम ।
उठा-उठा सिर दीखता, यहां वहां हर ठाम ।।
यहां वहां हर ठाम , रूप रावण के दिखते ।
कवि लेखक हर वर्ष,जल गया रावण,लिखते ।।
‘दीपक’ बारंबार , यही होती है शंका ।
किस रावण को मार, राम ने जीती लंका ।।-17

मानवता रोती रही, सहे नियति के डंक ।
पलता रहा समाज में, अनाचार आतंक ।।
अनाचार आतंक , बढ़ा तब लोग लड़े हैं ।
अब भी उनका जोश, हौसले बढ़े चढ़े हैं ।।
‘दीपक’ अपने पास, करो पैदा वह क्षमता ।
डर का होवे अंत, फले फूले मानवता ।।-18

पाले थे क्यों आपने, आस्तीन के सांप ।
काट लिया तो आपकी, रूह गई है कांप ।।
रूह गई है कांप, डरे हो , पछताते हो ।
पालोगे अब श्वान, हमें क्यों बतलाते हो ।।
‘दीपक’ होते ठीक,श्वान फिर भी रखवाले ।
सहता है खुद डंक, सांप जिसने हों पाले ।।-19

माटी का दीपक बना, बाती जिसके प्राण ।
स्नेह जल रहा उम्र का,लौ जिसकी मुस्कान ।।
लौ जिसकी मुस्कान,सुखद आलोक लुटाती ।
खर्च रही है कोष, सांस हर आती जाती ।।
दीपक ही है श्रेष्ठ, दीप्ति जिसकी परिपाटी ।
प्रतिफल दिव्यप्रकाश, शेष है, सो है माटी ।।-20

मन्दिर-मस्जिद चर्च में,बाँट दिया भगवान ।
चलें चक्कियां धर्म की , पिसें अज्ञ नादान ।।
पिसें अज्ञ नादान , धर्म की पीकर हाला ।
भिड़ें धर्म के नाम , द्वेष की उगलें ज्वाला ।।
साक्षी है इतिहास , लड़ाते मुल्ला – पंडित ।
लड़ते देखे अज्ञ ,लड़े कब मंदिर – मस्जिद ?-21

मोबाइल में गुण भरे, सदा राखिये साथ ।
पड़े जरूरत बात की, खूब करो ले हाथ ।।
खूब करो ले हाथ, मजा गानों का लीजे ।
फोटो खींचे खूब, सन्देशा लीजे – दीजे ।।
कह ‘दीपक’ कविराय,टार्च भी होती इस में ।
होय ज्ञान – विज्ञान, नेट भी मोबाइल में ।।-22

पैसा में गुण बहुत हैं, सुन लो जी श्रीमान ।
पैसा जिसके पास है, होता बहुत महान ।।
होता बहुत महान,न दिखता अवगुण कोई ।
करे जगत गुणगान, काम बैठे सब होई ।।
कह ‘दीपक’ समझाय, जगत में देखा ऐसा ।
अवगुण दिखे हजार,नहीं हो जिस पर पैसा ।।-23

महँगाई के दौर में , खाली – खाली जेब ।
खर्च हुई नगदी जमा, गिरवी नथ, पाजेब ।।
गिरवी नथ, पाजेब, हुआ अब चूल्हा भारी ।
रंक हुआ अति रंक, फेल है सब हुशियारी ।।
कह ‘दीपक’ समझाय,सुनो सब ध्यान लगाई ।
करिए सीमित खर्च, न रुकती यह महँगाई ।।-24

सच्चाई तो स्वर्ण है, झूठ मोम की भांति ।
पता चले जब-जब तपे, इन दोनों की जाति ।।
इन दोनों की जाति, निकल सच्चाई आवे ।
सोना चमके खूब , मोम जलकर मिट जावे ।।
कहता ‘दीपक’ सत्य, स्वर्ण ने आभा पाई ।
हुआ उसी का मान, मिली जिसमें सच्चाई ।।-25

भारत में आतंक से , जारी हा- हा- कार ।
शत्रु सुरक्षा भेदकर , भेज रहा हथियार ।।
भेज रहा हथियार , चलाता धंधा काला ।
रोज फूटते बौम्ब , उगलते भीषण ज्वाला ।।
युवकों में भटकाव , फूट कर रही तिजारत ।
इनका करो इलाज, स्वस्थ हो अपना भारत ।।-26

सावन सूखा हो गया, सूखे तरुवर , नीर ।
मुरझा गई हरीतिमा , रूठ गई तकदीर ।।
रूठ गई तकदीर , न होवे फसल सुखारी ।
भूखा रंक, किसान, दुखी यह भूमि हमारी ।।
बिना होय बरसात, सनूना रूखा – रूखा ।
काल होय विकराल,होय जब सावन सूखा ।।-27

दीवाली का अर्थ है, खुशियाँ रहें समीप ।
आलोकित हो जगत सब,जलें ज्ञान के दीप ।।
जलें ज्ञान के दीप, मिटे सारा अँधियारा ।
मिटें सभी भय, भूख, बन्द हो रिश्वत सारा ।।
मिले सभी को काम, भरे भोजन की थाली ।
रहे देश खुशहाल, मने घर – घर दीवाली ।।-28

दीवाली कहती सदा, करें सफाई लोग ।
घर में सुख सम्पत्ति रहे, रहे न कोई रोग ।।
रहे न कोई रोग ,रहे घर – घर खुशहाली ।
देश रहे गुलज़ार , सजे दीपों की थाली ।।
बच्चे भरें कुलाच, बजे खुशियों की ताली ।
मने देश में अगर, सदा ऐसी दीवाली ।।-29

पानी की महिमा बड़ी, पानी जग का सार ।
समझो वह बेकार है, जो ना पानीदार ।।
जो ना पानीदार, नदी,नल,सर,तरु,जलधर ।
करें नहीं सम्मान, नाव,नर,शकुची,नभचर ।।
सुनिए पाठक मित्र , बताते सुर,नर ज्ञानी ।
पंच तत्व में एक, मुख्य जीवन हित पानी ।।-30

पानी संचित कीजिये, करो नही बेकार ।
पानी में जीवन बसा, पानी अमृत धार ।।
पानी अमृत धार , गले की प्यास बुझाये ।
रहे आँख में नीर , मनुज का मान बढ़ाये ।।
सुनिये पाठक मित्र, बताते मुनिवर ज्ञानी ।
होता मूल्य विहीन, न होवे जिसमें पानी ।।-31

बच्चा रहता उम्र भर, स्वस्थ,सुधी, बलवान ।
माँ के मीठे दूध का, करता जो पयपान ।।
करता जो पयपान, बढ़े प्रतिरोधक क्षमता ।
हितकर माँ का दूध,मिले यदि माँ की ममता ।।
कहता ‘दीपक’ सत्य, फर्ज है माँ का सच्चा ।
पीकर माँ का दूध , शेर सा बनता बच्चा ।।-32

बाल दिवस पर शहर में, सपने मिले उदास ।
कचरा वाले ढेर पर, जीवन रहे तलाश ।।
जीवन रहे तलाश, नहीं शिक्षा मिल पाती ।
बढ़ा उदर भूगोल, पेट की आग भगाती ।।
‘दीपक’ दुख की बात, पढ़ाई नहीं मयस्सर ।
भोजन रहे तलाश,बाल कुछ बाल दिवस पर ।।-33

धुँआ उगलती चिमनियां, दूषित हुआ समीर ।
टी.बी., खाँसी, अस्थमा, रोगी हुआ शरीर ।।
रोगी हुआ शरीर , हुआ पोलूशन भारी ।
गये नगर में फेल, रोग , व्याधा , बीमारी ।।
कहता ‘दीपक’ सत्य,सजा जीवों को मिलती ।
करें प्रदूषण खूब, चलें बस धुँआ उगलती ।।-34

आँगन में तुलसी जली, धूप सकी ना झेल ।
इक दुल्हन ससुराल में,जली छिड़क कर तेल ।।
जली छिड़क कर तेल,दोष उसका बस इतना ।
लाई नही दहेज, ससुर ने माँगा जितना ।।
सुनिये पाठक मित्र, बढ़ा जब लालच मन में ।
पति ने छिड़का तेल, जली अबला आँगन में ।।-35

कन्या बोली गर्भ से, माँ, मुझको मत मार ।
मैं भी तेरा रूप हूँ , कुछ तो सोच विचार ।।
कुछ तो सोच विचार,बनूँ खुशबू आँगन की ।
मुझसे खिलते फूल, लता मैं नर जीवन की ।।
दे दो जीवन दान, माँगती फैला झोली ।
माँ, ममता मत त्याग, गर्भ से कन्या बोली ।।-36

पैसा की खातिर यहाँ, बदली सब की सोच ।
काम न होता देश में, बिना लिये उत्कोच ।।
बिना लिए उत्कोच, न बढ़ती फाइल आगे ।
देकर सुबिधा शुल्क,अचानक किस्मत जागे ।।
कह ‘दीपक’ समझाय, जमाना बदला ऐसा ।
पकड़ा रिश्वत लेत, छूट जा देकर पैसा ।।-37

हल है तेरी लेखनी, कोरे कागज खेत ।
श्रम सीकर से सींच कर,सबको भोजन देत ।।
सब को भोजन देत, स्वयं खा रूखा-सूखा ।
भर महलों का पेट, कभी खुद सोता भूखा ।।
कह दीपक समझाय,जगत का तू सम्बल है ।
हलधर सहता कष्ट,न अब तक कोई हल है ।।-38

कोयल वन में कूकती, बोले मीठे बोल ।
कौआ काले रंग का, देता है विष घोल ।।
देता है विष घोल, बोल कटु लगते जन को ।
वन में कोकी कूक,करे पुलकित तन मन को ।।
लेता मन को मोह, कोकिला का सुर चंचल ।
बोली सरस,अमोल, बोल ज्यों कूके कोयल ।।-39

काले बादल व्योम से, करें बहुत बरसात ।
हरियाली चहुंदिश हुई, भीगा वसुधा-गात ।।
भीगा बसुधा गात, बुझ गई प्यास धरन की ।
आकुलता हो दूर, मिटी गर्मी तन,मन की ।।
बूँद – बूँद अनमोल, भरे सर, नदिया, नाले ।
रिमझिम बरसे मेघ, घिरे घन काले-काले ।।-40

धंधा करने हम गये , घर से कोसों दूर ।
किन्तु मुम्बई में हुए , सपने चकना चूर ।।
सपने चकना चूर , चले थे मुक्के – डंडे ।
प्रान्तवाद ने स्वप्न , किये हैं सारे ठंडे ।।
नाचा था उन्माद , सड़क पर होकर अंधा ।
भगे बचाकर जान ,छोड़ हम अपना धंधा ।। -41

शिक्षा कैसी दे रही ?, ये भारत सरकार ।
लिए कटोरा हाथ में , बच्चे हैं लाचार ।।
बच्चे हैं लाचार , रोज पढ़ने भी जाते ।
होकर दशवीं पास, नही हिंदी पढ़ पाते ।।
पढ़े लिखे अज्ञान , ज्ञान की तोड़ी इच्छा ।
पाता देश भविष्य ,भिकारी बनकर शिक्षा ।।-42

कैसी अद्भुत योजना ? मित्रो मिड – डे मील ।
कर दी है क्या सोचकर ? शासन ने तामील ।।
शासन ने तामील , न पढ़ पाता है बच्चा ।
बजते चम्मच थाल , महज खाने की इच्छा ।।
क्या होगा भवितव्य ? देश की हालत ऐसी ।
बच्चे ज्ञान विहीन , नीति भारत की कैसी ?-43

सच्चा मजहब जानता , प्रेम- दया भरपूर ।
अति की कट्टरवादिता , बन जाती नासूर ।।
बन जाती नासूर , ध्वंस के बादल छाते ।
बॉम्ब और बारूद , मौत के खेल दिखाते ।।
भारी हुआ विनाश , सीख ले, मूरख बच्चा ।
दया-धर्म का मूल , प्रेम है मजहब सच्चा ।।-44

भूखी सोये मुफलिसी , सहती गहरी पीर ।
लेकिन गर्दिश में कभी , बेचे नही जमीर ।।
बेचे नही जमीर , कर्म से खुशियां लाती ।
खाती है अपमान , सभी को प्यार खिलाती ।।
फिर भी है बेमोल , दशा पर संसद रोये ।
बीते सत्तर साल , मुफलिसी भूखी सोये ।-45

रोटी ,कपड़ा ,घर ,हुनर, नहीं दवा का टूंक ।
लेकिन दे दी पाक ने , बच्चों को बंदूक ।।
बच्चों को बंदूक , शिविर चौड़े में चलते ।
प्रेम – दया सब दूर , द्वेष के हाथों पलते ।।
फसा स्वयं की चाल , चली जो हमको गोटी ।
छीनें दहशत गर्द , पाक की इज्जत रोटी ।।-46

हारा रावण युद्ध में , हुआ बाद में खेद ।
दुश्मन भाई बन गया , दिया विभीषण भेद ।।
दिया विभीषण भेद , मिटी रावण की लंका ।
रहें विभीषण देश , होय कर्मो से शंका ।।
वतन विरोधी तत्व , बहाते विष की धारा ।
इनका किया इलाज , शत्रु भी हारा – हारा ।।-47

माली माला हित रखे , अपने नेक उसूल ।
रंग – बिरंगे रूप के , जोड़ें सुंदर फूल ।।
जोड़ें सुंदर फूल , महक भी मन को भाती ।
मंडप हो गुलजार , चढ़े अर्थी की छाती ।।
‘दीपक’ सुंदर पुष्प , रखे दुर्गंध निराली ।
मिले नही सम्मान , तजे माला से माली ।।-48

लंका पति का वध किया, तन का काम तमाम ।
रावण मरा न आज तक , मार न पाए राम !!
मार न पाए राम , जगत में रावण छाया ।
बनकर दहशत गर्द , खूब उत्पात मचाया ।।
हे भारत के वीर , बजा दो रण का डंका ।
मिट जाए आतंक , जलाओ अरि की लंका ।।-49

रोना होगा लाजमी , यदि लग जाए डंक ।
आदिकाल से आदमी , झेल रहा आतंक ।।
झेल रहा आतंक , लड़ा था जटायु अड़कर ।
गए देश हित प्राण , मरा रावण से लड़कर ।।
मारा रावण दुष्ट , खुशी था कोना – कोना ।
रहें न दहशत गर्द , दूर हो सबका रोना ।।-50

लेखक

  • शिवकुमार दीपक

    शिव कुमार ‘दीपक’ पिता - स्व०श्री खुशाली राम बघेल माता - स्व०श्रीमती चन्द्रवती देवी जन्म तिथि - 10अगस्त 1975 प्रकाश्य कृति - दोहा संग्रह और कुण्डलिया संग्रह प्रकाशन - समकालीन दोहा कोश (सं०- हरेराम समीप ) में दोहे एवं परिचय प्रकाशित, के अलावा देश के लोकप्रिय दोहा संकलन, दोहा विशेषांक, कुण्डलिया विशेषांक , कई अप्राप्त पुस्तकों ,शोध ग्रंथों एवं देश की विभिन्न साहित्यक पत्र-पत्रिकाओं, अमर उजाला, दैनिक जागरण, DLA दैनिक पत्र, प्रावदा दैनिक,दैनिक नवाचार, दि ग्राम टुडे(मासिक), दैनिक हरियाणा प्रदीप, दर्जनों साप्ताहिक पत्रों आदि में रचनाओं का अनवरत प्रकाशन । प्रसारण- आकाशवाणी मथुरा और आकाशवाणी दिल्ली से कविताओं का प्रसारण । सम्मान - 1-साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी (प्रतापगढ़) द्वारा वर्ष 2008 का हिंदी सेवी सम्मान । 2- विमल साहित्य सदन (मथुरा) द्वारा वर्ष 2009 में ‘दोहा श्री ‘ की मानद उपाधि से सम्मानित । 3- यू.एस.एम. पत्रिका द्वारा वर्ष 2010 का राष्ट्रीय हिंदी सेवी सम्मान । 4- राम रहमान साहित्यिक सांस्कृतिक संस्थान (बस्ती ) द्वारा प्रतिष्ठित ‘डॉ० लक्ष्मी नारायण लाल पुरस्कार वर्ष 2016 ‘ से सम्मानित । 5- अखिल भारतीय साहित्य परिषद ( ब्रज प्रान्त ) द्वारा ‘ ब्रज गौरव सम्मान ‘ वर्ष 2016 में सम्मानित । E mail - kavishivkumardeepak@gmail.com पता- गाँव- बहरदोई , पत्रालय- आरती जनपद- हाथरस ( उ० प्र० )

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