+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

दोहे (माँ का राज़)/डॉ. बिपिन पाण्डेय

माँ की  वाणी में मिले, सद्ग्रंथों  का सार।

उसकी ममता के बिना,जीवन है निस्सार।।1

 

माँ के हाथों से बनी, चीजों में हो स्वाद ।

सबको ऐसे तृप्ति दे, जैसे कथा प्रसाद ।।2

मात-पिता इस जगत में,ईश्वर  रूप समान।

इनके शुभ आशीष में ,प्रभु का हो वरदान।।3

उतने भी सिक्के नहीं,देता कमा कुमार।

माँ ने फेंके थे कभी,जितने नज़र उतार।।4

फूँक  मारकर  चोट का ,कैसे  करे  इलाज।

समझ न पाया आज तक,कोई माँ का राज।।5

कान  उमेठे  दंड  दे,भर आँखों  में नीर।

सदा सँवारे इस तरह,माँ संतति तकदीर।।6

वेद ऋचाओं-सी लगे,माता की हर बात।

हरे दुःख की धूप वह ,करे नेह बरसात।।7

घर में घुसते माँ करे,कुशल-क्षेम की बात।

मिट जाते हैं कष्ट जब,वह सहलाती गात।।8

माँ आँचल की छाँव से,जीवन होता धन्य।

दुख-कष्टों की  धूप में ,वह होती  पर्जन्य।।9

माँ की महिमा का सदा,जग करता गुणगान।

निश्चय ही माँ धरणि पर,होती बड़ी महान।।10

रहकर माँ के गर्भ में ,आती तन में जान।

माँ के सम्मुख तुच्छ है,मित्रो सकल जहान।।11

टाँगा मैंने कक्ष में ,जब से माँ का चित्र।

घर मंदिर सा हो गया,तब से बड़ा पवित्र।।12

जिसको जीवन में मिला,माँ से आशीर्वाद।

वही जिंदगी में सफल,और हुआ आबाद।।13

माँ का आँचल जगत में,अद्भुत और अनूप।

नहीं पहुँचती है वहाँ ,कभी ग़मों की धूप।।14

होटल में खाने गया,आई माँ की याद।

माँ के हाथों-सा नहीं,आया उसमें स्वाद।।15

माँ का आदर कीजिए,बनकर रहिए भक्त।

उसके आशीर्वाद से ,परिवर्तित हो वक़्त।।16

चाहे जितनी दूर हो ,पर लगती माँ पास।

दुनिया उसको मानती,प्यार भरा अहसास।।17

माँ की ममता का बहुत, याद आ रहा गाँव।

मिलती थी हमको जहाँ,नित आँचल की छाँव।।18

केवल माता की दुआ,करती सदा बचाव।

दुश्मन दुनिया दे रही,बस घावों पर घाव।।19

माँ की तो हर बात में, रहता मेरा ज़िक्र।

वह करती है सर्वदा,ज़ाहिर अपनी फ़िक्र।।20

रहती है माँ की दुआ, जग में जिसके साथ।

झुका न पाता है कभी ,कोई उसका माथ।।21

घर में अल्बम में मिली,जब माँ की तस्वीर।

मिटी गरीबी हो गया ,मैं तो बहुत अमीर।।22

पूजा और नमाज़ की,उसको क्या दरकार।

उठकर करता हर सुबह,जो माँ का दीदार।।23

माँ की जो सेवा करे,बनकर श्रवण कुमार।

खुल जाते उसके लिए,स्वतः स्वर्ग के द्वार।।24

माँ ने यदि होती लिखी,बच्चों की तक़दीर।

हिस्से में  आती  नहीं ,उनके  कोई   पीर।।25

बिछुड़े जब माँ पुत्र से,हो जाती बेचैन।

सदा पुत्र की याद में,रहे भिगोती नैन।।26

संतति होती जिगर का,टुकड़ा सच ये बात।

जब वह माँ से दूर हो ,मुरझा जाते गात।।27

सबसे सुन्दर पालना ,जग में माँ की गोद।

जहाँ कष्ट हर दूर हो,मिले अतुल आमोद।।28

चाहे जितना हो बड़ा,रिश्तों का संसार।

कोई दे सकता नहीं, माँ के जैसा प्यार।।29

पल में देती न्याय जो,मर्ज़ करे तक़सीम।

माँ जैसा कोई नहीं, मुंसिफ़ और हकीम।।30

लेखक

  • डाॅ. बिपिन पाण्डेय

    डाॅ. बिपिन पाण्डेय जन्म तिथि: 31/08/1967 पिता का नाम: जगन्नाथ प्रसाद पाण्डेय माता का नाम: कृष्णादेवी पाण्डेय शिक्षा: एम ए, एल टी, पी-एच डी ( हिंदी) स्थाई पता : ग्राम - रघुनाथपुर ( ऐनी) पो - ब्रह्मावली ( औरंगाबाद) जनपद- सीतापुर ( उ प्र ) 261403 रचनाएँ (संपादित): दोहा संगम (दोहा संकलन), तुहिन कण (दोहा संकलन), समकालीन कुंडलिया ( कुंडलिया संकलन) मौलिक- स्वांतः सुखाय (दोहा संग्रह),शब्दों का अनुनाद ( कुंडलिया संग्रह) ,अनुबंधों की नाव ( गीतिका संग्रह), अंतस् में रस घोले ( कहमुकरी संग्रह) साझा संकलन- कुंडलिनी लोक, करो रक्त का दान, दोहों के सौ रंग, भाग-2,समकालीन मुकरियाँ ,ओ पिता!, हलधर के हालात, उर्वी, विवेकामृत-2023,उंगली कंधा बाजू गोदी, आधुनिक मुकरियाँ और अनेकानेक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। पुरस्कार: दोहा शिरोमणि सम्मान ,मुक्तक शिरोमणि सम्मान,कुंडलिनी रत्न सम्मान,काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान, साहित्यदीप वाचस्पति सम्मान,लघुकथा रत्न सम्मान ,आचार्य वामन सम्मान आदि वर्तमान पता : केंद्रीय विद्यालय क्रमांक-2, रुड़की, हरिद्वार ( उत्तराखंड) 247667 चलभाष : 9412956529

    View all posts
दोहे (माँ का राज़)/डॉ. बिपिन पाण्डेय

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

×