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मुकरियाँ/तारकेश्वरी ‘सुधि’

जब भी बैठा थाम कलाई।
मैं मन ही मन में इतराई ।
नहीं कर पाती मैं प्रतिकार ।
क्या सखि, साजन? नहीं, मनिहार ।

धरता रूप सदा बहुतेरे।
जगती आशा जब ले फेरे।
कभी निर्दयी कर देता छल।
क्या सखि, साजन? ना सखि, बादल।

राज छुपाकर रखता गहरे।
तरह-तरह के उन पर पहरे।
करता कभी न भेद उजागर।
क्या सखि, साजन?ना सखि, सागर।

मुझको बाँहो में ले लेती।
मीठे प्यारे सपने देती।
वह सुख से भर देती अँखियाँ।
क्या प्रिय, सजनी? ना प्रिय, निंदिया।

मेरे चारों और डोलता।
जाने क्या क्या शब्द बोलता।
बड़े गूढ़ हैं सारे अक्षर।
क्या सखी, प्रेमी?ना सखि, मच्छर।

मधुर -मधुर संगीत सुनाती।
वह पैरों में लिपटी जाती।
करे प्रेम से मन को कायल।
क्या प्रिय, सजनी?ना प्रिय, पायल।

सुबह सवेरे मुझे जगाए।
प्यारा सा संगीत सुनाए।
खिल-खिल जाती मन की बगिया।
क्या सखि, साजन?ना सखि, चिड़िया।

उसकी सुंदरता, क्या कहना।
पहना उसने एक न गहना।
पुष्प देखकर हरदम मचली।
क्या प्रिय, सजनी?ना प्रिय, तितली।

श्याम सलोना फिर भी प्यारा।
वह अल्हड़ है वह बनजारा।
प्यार जताता वह रह-रहकर।
क्या सखि,साजन?ना सखि, मधुकर।

जैसी हूँ वैसी बतलाए।
सत्य बोलना उसे सुहाए।
मेरा मुझको करता अर्पण।
क्या सखि, साजन? ना सखि, दर्पण।

बात- बात पर करे लड़ाई।
लेकिन पीछे करे बड़ाई।
माने हरदम मेरा कहना।
क्या सखि, साजन ? ना सखि, बहना।

जब-जब मेरा तन-मन हारा।
दिया सदा ही मुझे सहारा।
उसके बिना न आए निंदिया।
क्या सखि, साजन?ना सखि,तकिया।

रात गए वह घर में आता।
सुबह सदा ही जल्दी जाता।
दिन में जाने किधर बसेरा।
क्या सखि, साजन?नहीं,अँधेरा।

रात- दिवस या साँझ सकारे।
उसके सीने में अंगारे।
धुँआ बना दे वह सबका गम।
क्या सखि, साजन?ना सखी, चिलम।

सब बातों को करे किनारे।
वह बस मेरी नकल उतारे।
तन सुंदर, वह अच्छा श्रोता।
क्या सखि, साजन?ना सखि, तोता।

जब वह आता देता खुशियाँ।
बाट जोहती मेरी अँखियाँ।
फरमाइश का लगे अंबार।
क्या सखी, साजन? नहीं, इतवार।

रखता है हर दिन का लेखा।
उसको करूँ न मैं अनदेखा।
उसे तलाशूँ दिखे ना अगर।
क्या सखि, साजन? नहीं, कलेंडर।

सब सुविधाएँ उस पर निर्भर।
उसके बिन हो जीवन दूभर।
और न दूजा उसके जैसा।
क्या सखि,साजन?ना सखि, पैसा।

नए वसन में वह इठलाती।
सुंदर अँखियों से मुस्काती।
बच्चों की खुशियों की पुड़िया।
क्या प्रिय, सजनी? ना प्रिय, गुड़िया।

मीठे सुर में जब वह गाती।
मेरे मन को बेहद भाती।
ह्रदय सदा ही रहता हर्षुल।
क्या सखि, साजन?ना सखि, बुलबुल।

सार- सार वह मुझको देती।
अपशिष्टों को खुद रख लेती।
इसीलिए वह है मन हरनी।
क्या प्रिय, सजनी?ना प्रिय, छलनी।

अजब- गजब का पाठ पढ़ाए।
सही- गलत राहें दिखलाए।
बातें करें न उथली- थोथी।
क्या सखि, साजन?ना सखि, पोथी।

गोल-गोल मैं उसे घुमाउँ।
चाहे जैसे नाच नचाऊँ।
करे कभी न वह अवहेलन।
क्या सखी, साजन?ना सखि,बेलन।

लेखक

  • तारकेश्वरी'सुधि'

    तारकेश्वरी'सुधि' माता- श्रीमती शकुन्तला देवी पिता-श्री सईराम यादव जन्म- 10 जुलाई 1973 शिक्षा - एम.ए. (राजनीति विज्ञान,हिंदी ), बी.एड. जन्म स्थान - सिलपटा , अलवर, (राजस्थान) प्रकाशित कृतियाँ - 1-सुधियों की देहरी पर (दोहा संग्रह)। 2-रसरंगिनी (मुकरी संग्रह ) 3-शब्द वीणा (कुंडलिया संग्रह) अनेक साझा संकलनों में दोहे,गीत, ग़ज़ल, कुंडलिया, लघुकथा प्रकाशित । के अलावा विभिन्न दैनिक व मासिक पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन सम्प्रति -शिक्षिका व स्वतंत्र लेखन संपर्क--truyadv44@gmail.com मो.- 9829389426

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