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बंदर मामा/भाऊराव महंत

कभी-कभी तो बंदर मामा,
खुद को जतलाने विद्वान।
अजब-गजब का ड्रामा करते,
और मचाते हैं तूफान।
एक रोज ज्ञानी बनने का,
हुआ उन्हें था भूत सवार।
इसीलिए वे पकड़ हाथ में,
बैठ गए पढ़ने अखबार।
जहाँ भीड़ थी जानवरों की,
बैठे वहीं पालथी मार।
और लगाकर काला चश्मा,
हुए पढ़ाकू से तैयार।
लगे जानवर हँसने खीं-खीं,
देख सभी बंदर की ओर।
सब पशुओं के हँसने से फिर,
होने लगा शोर पर शोर।
तभी गधे ने बोला– ‘बंदर,
इतना भी मत बन हुशियार।
हम को मूर्ख समझने वाला,
खुद पकड़ा उल्टा अखबार।’
बात गधे की बंदर मामा,
सुनकर हुए शर्म से लाल।
और वहीं अखबार छोड़ फिर,
भाग गए वे तो तत्काल।।

लेखक

  • भाऊराव महंत ग्राम बटरमारा, पोस्ट खारा जिला बालाघाट, मध्यप्रदेश पिन - 481226 मो. 9407307482

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