वो लगाकर मुझको गले,
मेरी सारी नज़र उतार देती थी,
दुनिया के बाकी सारे रिश्ते थे मतलबी,
माँ बस इक तू ही तो निस्वार्थ प्यार देती थी,
वो चूमकर मेरा माथा,
मेरी सोई हुई किस्मत सुधार देती थी,
वो दुनिया भर की असीम खुशियाँ,
मुझपर वार देती थी,
जब भी कभी मायूस होता था कभी,
माँ तू बेहिसाब दुलार देती थी,
अपना तो कभी सोचती ही नहीं थी,
हमारी फ़िक्र में तू जीवन गुजार देती थी,
मैं जब भी तुझसे रोटी दो माँगता था,
तू बड़े प्यार से चार देती थी,
वो लगाकर मुझको गले,
मेरी सारी नज़र उतार देती थी,
मेरी माँ/देवेंद्र जेठवानी