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पुत्र की चाह/डाॅ. मृत्युंजय कोईरी

बेणी प्रसाद चार पुत्री का पिता बन गया। पुत्र की चाह में गाँव के एक आदमी के कहने पर एक बाबा के पास पत्नी फूलमनी के साथ चला जाता है। बाबा को बेणी प्रसाद अपनी समस्या बता दी। बाबा इतराकर कहा, ‘‘अरे बेटा! तुमने बहुत देर कर दी। एक पुत्री के बाद ही मेरे पास आता तो आज सिर में चार-चार पुत्री का बोझ उठाना नहीं पड़ता।’’
‘‘बाबा, मैं एक बेटी के बाद से ही बेटा की दवा करा रहा हूँ। जहाँ भी गया। सभी बाबा और तांत्रिक ने बेटा का आशीर्वाद दिया।’’ बेणी प्रसाद
‘‘वे सब के सब ढोंगी बाबा हैं। तुमको पहले ही मेरे पास आना चाहिए था। मेरी दवा से अनेक को बेटा हुआ है।’’
‘‘क्या कहूँ बाबा? जिसने जहाँ कहा, वहाँ चला गया। अनेक मंदिर में माथा टेका, नंगे पांव चलकर पुत्र का मन्नत किया। लेकिन अब तक निराशा के सिवा कुछ प्राप्त नहीं हुआ।’’
‘‘बेटा, अब मन से चिंता दूर कर लो। जा! मेरा आशीर्वाद है। एक वर्ष के अंदर तुम्हारा पुत्र की चाह पूर्ण होगी। लो बेटी, कुंठरा बाबा का नाम लेकर दवा को खा जा।’’
फूलमनी दवा को खाकर बाबा का पैर छूकर प्रणाम की। बेणी भी बाबा की दवा का मूल्य पाँच हजार रुपये रखकर पैर छूआ। बाबा आशीर्वाद देता हुआ कहा, ‘‘बेटा याद रखना। लड़का का पहला मुंडन यहाँ होगा। तब एक बकरा लगेगा, धोती-साड़ी, चावल-दाल, प्याज-लहसून आदि लेकर आना। खुशी से सभी दस-बीस हजार रुपये देकर चले जाते हैं।’’
‘‘आपकी कृपा से मुझे लड़का हुआ तो मैं आपको प्रसन्न कर दूँगा बाबा। बोलने का मौका नहीं दूँगा।’’ बेणी
फूलमनी पाँचवीं बार भी पुत्री को जन्म दी। बेणी क्रोध से पुत्री को गोदी भी नहीं लिया। ऊपर से फूलमनी को फटकारता है, ‘‘मनहूस! तू मुझे लड़का नहीं दे सकती है तो मर जा! मैं दूसरा ब्याह कर लूँगा। मन तो ऐसा करता है कि तुम सब माँ-बेटी को जहर देकर मार दूँ। तुम सब केवल सिर का बोझ हो और कुछ नहीं। मैं दूसरा ब्याह करने जा रहा है। सुन लो और नहीं सुनी तो कान खोल के सुन, मैं फिर कहता हूँ। दूसरा विवाह करने जा रहा हूँ।’’
फूलमनी पुत्री को हृदय में लगाकर केवल रोती है। तीसरे दिन गाँव में खबर फैल गयी। बेणी गाँव के गोना की बड़ी बेटी से शिव मंदिर में विवाह कर रहा है। यह सुनते ही बेणी की बड़ी बेटी रूही शिव मंदिर की ओर दौड़ी। पिता अपनी उम्र की लड़की से विवाह कर रहा है। रूही पिता से बोलती है, ‘‘आपको शर्म नहीं आती है। मेरी उम्र की लड़की से विवाह कर रहे हो। हम पाँच बहनें हैं, मानो तो पाँच पुत्र ही हैं। भगवान किसी को पुत्री माँगने से नहीं देता है। पुत्री लक्ष्मी का रूप होती है। आप लक्ष्मी की अवहेलना किया है। आपको कभी पुत्र की प्राप्ति नहीं होगा। आपको कभी पुत्र की प्राप्ति नहीं होगा………………..।’’ फिर रोने लगी।
फूलमनी और उनकी बेटी को अब बेणी प्यार नहीं करता है। कुछ भी कहने पर मारने-पीटने लगता है। विवश फूलमनी की आत्मा कहती है, ‘‘हे भगवान ऐसा पति किसी को मत देना। जो पुत्र की चाह में अनेक की जिंदगी नरक बना दे। बेटी को ब्याह देने के वजाय पुत्र की चाह में बेटी की उम्र की लड़की से दूसरा ब्याह करे। उसे पति कहते भी शर्म आ रही है।’’
बेणी की दूसरी पत्नी भी एक-एक करते सात पुत्री को जन्म दी।

लेखक

  • डॉ. मृत्युंजय कोईरी

    डॉ. मृत्युंजय कोईरी शिक्षा; स्नातकोत्तर हिन्दी पीएचडी0 कहानी संग्रह-मेंड़, राजेश की बैल, एक बोझा धान सम्प्रति-सहायक प्राध्यापक हिन्दी विभाग

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