छागर मेढ़ा बड़ औ छोटे । धरि धरि आने जहँ लगि मोटे ॥
हरिन, रोझ, लगना बन बसे । चीतर गोइन, झाँख औ ससै ॥
तीतर, बटई, लवा न बाँचे । सारस, कूज, पुछार जो नाचे ॥
धरे परेवा पंडूक हेरी । खेहा, गुडरू और बगेरी ॥
हारिल, चरग, चाह बँदि परे । बन-कुक्कुट, जल-कुक्कुट धरे ॥
चकई चकवा और पिदारे । नकटा, लेदी, सोन सलारे ॥
मोट बड़े सो टोइ टोइ धरे । ऊबर दूबर खुरुक न, चरे ॥
कंठ परी जब छूरी रकत ढुरा होइ आँसु ।
कित आपन तन पोखा भखा परावा माँसु?॥1॥
(रोझ=नीलगाय, लगना=एक वनमृग, चीतर=चित्रमृग, गोइन=कोई
मृग, झाँख=एक प्रकार का बड़ा जंगली हिरन; जैसे – ठाढ़े ढिग बाघ,
बिग, चिते चितवत झाँख मृग शाखा मृग सब रीझि रीझि रहे हैं,
ससे=खरहे, पुछार=मोर, खेहा=केहा, बटेर की तरह की एक चिड़िया,
जुडरू=कोई पक्षी, बगेरी=भरद्वाज,भरुही, चरग=बाज की जाति की
एक चिड़िया, चाह=चाहा नामक जलपक्षी, पिदारे=पिद्दे, नकटा=एक
छोटी चिड़िया सोन, सलारे=कोई पक्षी, खुरुक=खटका)
धरे माछ पढिना औ रोहू । धीमर मारत करै न छोहू ॥
सिधरी, सौरि, धरी जल गाढे । टेंगर टोइ टोइ सब काढे ॥
सींगी भाकुर बिनि सब धरी । पथरी बहुत बाँब बनगरी ॥
मारे चरख औ चाल्ह पियासी । जल तजि कहाँ जाहिं जलबासी?॥
मन होइ मीन चरा सुख-चारा । परा जाल को दुख निरुवारा?॥
माँटी खाय मच्छ नहिं बाँचे । बाँचहि काह भोग-सुख-राँचे?॥
मारै कहँ सब अस कै पाले । को उबार तेहि सरवर-घाले?॥
एहि दुख काँटहि सारि कै रकत न राखा देह ।
पंथ भुलाइ आइ जल बाझे झूठे जगत सनेह ॥2॥
(पढिना=पाठीन मछली, पहिना, रोहू, सिधरी, सौरी टेंगरा,
सींगी, भाकुर, पथरी, बनगरी, चरख, पियासी=मछलियों
के नाम, बाँब=बाम मछली जो देखने में साँप कि तरह
लगती है, चाल्ह=चेल्हवा मछली, निरुवारा=छुड़ाए, राँचे=
अनुरक्त,लिप्त, तेहि सरवर-घाले=उस सरोवर में पड़े हुए
को कौन बचा सकता है,(जीवपक्ष में संसार-सागर में पड़े
हुए का कौन उद्धार कर सकता है, एहि दुख…देह=इसी
दुख से तो मछली ने शरीर में काँटे लगाकर,रक्त नहीं रखा)
देखत गोहूँ कर हिय फाटा । आने तहाँ होव जहँ आटा ॥
तब पीसे जब पहिले धोए । कपरछानि माँडे, भल पोए ॥
चढ़ी कराही, पाकहिं पूरी । मुख महँ परत होहि सो चूरी ॥
जानहुँ तपत सेत औ उजरी । नैनू चाहि अधिक वै कोंवरी ॥
मुख मेलत खन जाहिं बिलाई । सहस सवाद सो पाव जो खाई ॥
लुचुई पोइ पोइ घिउ-मेई । पाछे छानि खाँड-रस मेई ॥
पूरि सोहारी कर घिउ चूआ । छुअत, डरन्ह को छूआ? ॥
कही न जाहिं मिठाई, कहत मीठ सुठि बात ।
खात अघात न कोई, हियरा जात सेरात ॥3॥
(तपत=जलती हुई,गरम गरम, नैनू=नवनीत,मक्खन,
कोंवरी=कोमल, घिउ मेई=घी का मोयन दी हुई, कहत
म मीठ …बात=उनके नाम लेने से मुँह मीठा हो जाता है)
चढ़े जो चाउर बरनि न जाहीं । बरन बरन सब सुगँध बसाहीं ॥
रायभोग औ काजर-रानी । झिनवा, रुदवा, दाउदखानी ॥
बासमती, कजरी, रतनारी । मधुकर, ढेला, झीनासारी ॥
घिउकाँदौ औ कुँवरबिलासू । रामबास आवै अति बासू ॥
लौंगचूर लाची अति बाँके । सोनखरीका कपुरा पाके ॥
कोरहन,बडहन, जडहन मिला । औ संसारतिलक खँडविला ॥
धनिया देवल और अजाना । कहँ लगि बरनौं जावत धाना ॥
सोंधे सहस बरन, अस सुगंध बासना छूटि ।
मधुकर पुहुप जो बन रहे आइ परे सब टूटि ॥4॥
(काजर-रानी=रानी काजल नाम का चावल, रायभोग,झिनवा,
रुदवा,दाउदखानी,बासमती,कजरी,मधुकर,ढेला,झीनासारी,घिउकाँदो,
कुँवर-बिलास,रामबास,लवँगचूर,लाची,सोनखरिका,कपूरी,संसारतिलक,
खँडविला,धनिया,देवल=चावलों के नाम, पुहुप=फूलों पर)
निरमल माँसु अनूप बघारा । तेहि के अव बरनौं परकारा ॥
कटुवा, बटुवा मिला सुबासू । सीझा अनबन भाँति गरासू ॥
बहुतै सोंधे घिउ महँ तरे । कस्तूरी केसर सौं भरे ॥
सेंधा लोन परा सब हाँडी । काटी कंदमूर कै आँडी ॥
सोआ सौंफ उतारे घना । तिन्ह तें अधिक आव बासना ॥
पानि उतारहिं ताकहिं ताका । घीउ परेह माहिं सब पाका ॥
औ लीन्हें माँसुन्ह के खंडा । लागे चुरै सो बड़ बड़ हंडा ॥
छागर बहुत समूची धरी सरागन्ह भूँजि ।
जो अस जेंवन जेंवै उठै सींघ अस गूँजि ॥5॥
(कटुवा=खंड खंड कटा हुआ, बटुआ=सिल पर बटा या पिसा हुआ,
अनबन=विविध,अनेक, गरासू=ग्रास, कौर, तरे=तले हुए, आँडी=अंठी,
गाँठ, ताकहिं ताका=तवा देखते हैं, परेह=रसा, शोरबा, सरागन्ह=
सिखचों पर,शलाकाओं पर, गूँजि=उठे)
भूँजि समोसा घिउ महँ काढ़े । लौंग मरिच जिन्ह भीतर ठाढ़े ॥
और माँसु जो अनबन बाँटा । भए फर फूल, आम औ भाँटा ॥
नारँग, दारिउँ, तुरँज, जभीरा । औ हिंदवाना, बालम खीरा ॥
कटहर बड़हर तेउ सँवारे । नरियर, दाख, खजूर, छोहारे ॥
औ जावत जो खजहजा होहीं । जो जेहि बरन सवाद सो ओहीं ॥
सिरका भेइ काढ़ि जनु आने । कवँल जो कीन्ह रहे बिगसाने ॥
कीन्ह मसेवरा, सीझि रसोई । जो किछु सबै माँसु सौं होई ॥
बारी आइ पुकारेसि लीन्ह सबै करि छूँछ ।
सब रस लीन्ह रसोई, को अव मोकहँ पूछ ॥6॥
(ठाढ़े=खड़ी,समूची, भए फर…भाँटा=माँस ही अनेक प्रकार के
फल-फूल के रूप में बना है, हिंदवाना=तरबूज,कलींदा, बालम
खीरा=खीरे की एक जाति, खजहजा=खाने के फल, सिरका
भेइ…आने=मानों सिरके में भिगोए हुए फल समूचे लाकर
रखे गए हैं (सिरके में पड़े हुए फल ज्यों के त्यों रहते हैं),
मसेवरा=माँस की बनी चीजें, सीझि=पक्की,सिद्ध हुई, बारी=
काछी या माली, बारी आइ…छूँछ=माली ने पुकार मचाई
कि मेरे यहाँ जो फल-फूल थे वे सब तो मुझे खाली करके
ले लिए अर्थात् वे सब माँस ही के बना लिए गए)
काटे माछ मेलि दधि धोए । औ पखारि बहु बार निचोए ॥
करुए तेल कीन्ह बसवारू । मेथी कर तब दीन्ह बघारू ॥
जुगुति जुगुति सब माँछ बघारे । आम चीरि तिन्ह माँझ उतारे ॥
औ परेह तिन्ह चुटपुट राखा । सो रस सुरस पाव जो चाखा ॥
भाँति भाँति सब खाँडर तरे । अंडा तरि तरि बेहर धरे ॥
घीउ टाँक महँ सोंध सेरावा । लौंग मरिच तेहि ऊपर नावा ॥
कुहुँकुहुँ परा कपूर-बसावा । नख तें बघारि कीन्ह अरदावा ॥
घिरित परेह रहा तस हाथ पहुँच लगि बूड़ ।
बिरिध खाइ नव जोबन सौ तिरिया सौं ऊड़ ॥7॥
(पखारि=धोकर, बसवारू=छौंक, परेह=रसा, खाँडर=कतले,
तरि=तलकर, बेहर=अलग, टाँक=बरतन, कटोरा, सेरावा=ठंढा
किया, नख=एक गंधद्रव्य, अरदावा=कुचला या भुरता, पहुँच
लगि=पहुँचा या कलाई तक, ऊड=विवाह करे या रखे (ऊढ))
भाँति भाँति सीझीं तरकारी । कइउ भाँति कोहँडन कै फारी ॥
बने आनि लौआ परबती । रयता कीन्ह काटि रती रती ॥
चूक लाइ कै रींधे भाँटा । अरुई कहँ भल अरहन बाटा ॥
तोरई, चिचिड़ा, डेंडसी तरी । जीर धुँगार झार सब भरी ॥
परवर कुँदरू भूँजे ठाढ़े । बहुत घिउ महँ चुरमुर काढ़े ॥
करुई काढ़ि करैला काटे । आदी मेलि तरे कै खाटे ॥
रींधे ठाढ़ सेब के फारा । छौंकि साग पुनि सोंध उतारा ॥
सीझीं सब तरकारी भा जेंवन सव ऊँच ।
दहुँ का रुचै साह कहँ, केहि पर दिस्टि पहुँच ॥8॥
(फारी=फाल,टुकड़े, लौआ=घीया, कद्दू, रयता=रायता, रती रती=
महीन महीन, चूक=खटाई, रींधे=पकाए, अरहन=चने की पिसी
दाल जो तरकारी में पकाते समय डाली जाती है रेहन, बाटा=
पीसा, डेंडसी=कुम्हड़े की तरह की एक तरकारी, टिंड,(टिडिस),
तरी=तली, धुँगार=छौंक, चुरमुर=कुरकुरे, करुई काड़ि=कड़वापन
निकालकर (नमक हल्दी के साथ मलकर ), कै खाटै=खट्टे करके,
फारा=फाल,टुकड़े)
घिउ कराह भरि, बेगर धरा । भाँति भाँति के पाकहिं बरा ॥
एक त आदी मरिच सौं पीठा । दूसर दूध खाँड सौ मीठा ॥
भई मुगौछी मरिचैं परी । कीन्ह मुगौरा औ बहु बरी ॥
भईं मेथौरी, सिरका परा । सोंठि नाइ कै जरसा धरा ॥
माठा महि महियाउर नावा । भीज बरा नैनू जनु खावा ॥
खंडै कीन्ह आमचुर परा । लौंग लायची सौं खँडवरा ॥
कढ़ी सँवारी और फुलौरी । औ खँडवानी लाइ बरौरी ॥
रिकवँच कीन्हि नाइ कै, हींग मरिच औ आद ।
एक खंड जौ खाइ तौ पावै सहस सवाद ॥9॥
(बेगर=उर्द या मूँग का रवादार आटा,धुँवाँस, बरा=बड़ा, पीठा=पीसा
गया, मुँगौछी=मूँग का पकवान, मुँगौरा=मूँग की पकौड़ी, मेथौरी=एक
प्रकार की बड़ी, खरसा=एक पकवान, महियाउर=मट्ठे में पका चावल,
नैनू=नवनीत, मक्खन, बरौरी=बढ़ी, रिकवँच=अरुई या कच्चू के पत्ते
पीठी में लपेटकर बनाए हुए बड़े, आद=अदरक)
तहरी पाकि, लौंग औ गरी । परी चिरौंजी औ खरहरी ॥
घिउ महँ भीँजि पकाए पेठा । औ अमृत गुरंब भरे मेटा ॥
चुंबक-लोहँडा औटा खोवा । भा हलुवा घिउ गरत निचोवा ॥
सिखरन सोंध छनाई गाढ़ी । जामी दूध दही कै साढ़ी ॥
दूध दही कै मुरंडा बाँधे । और सँधाने अनबन साधे ॥
भइ जो मिठाई कही न जाई । मुख मेलत खन जाइ बिलाई ॥
मोतीचूर, छाल औ ठोरी । माठ, पिराकैं और बुँदौरी ॥
फेरी पापर भूँजे, भा अनेक परकार ।
भइ जाउरि पछियाउरि; सीझी सब जेवनार ॥10॥
(तहरी=बड़ी और हरी मटर के दानों की खिचड़ी, खरहरी=खरिक,
छुहारा, गुरंब=शीरे में रखे हुए आम, मेटा=मिट्टी के बरतन,मटके,
लोहँडा=लोहे का तसला, मुरंडा=पानी निथार कर पिंडाकार बँधा
दही या छेना, सँधाने=अचार, छाल=एक मिठाई, टोरी=ठौर,
पिराकैं=गोझिया, बुँदोरी=बुँदिया, पछियाउरि=मट्ठे में भिगोई
बुँदिया, सीझी=सिद्ध हुई,पकी)
जत परकार रसोइ बखानी । तत सब भई पानि सौं सानी ॥
पानी मूल, परिख जौ कोई । पानी बिना सवाद न होई ॥
अमृत-पान सह अमृत आना । पानी सौं घट रहै पराना ॥
पानी दूध औ पानी घीऊ । पानि घटे, घट रहै न जीऊ ॥
पानी माँझ समानी जोती । पानिहि उपजै मानिक मोती ॥
पानिहि सौं सब निरमल कला । पानी छुए होइ निरमला ॥
सो पानी मन गरब न करई । सीस नाइ खाले पग धरई ॥
मुहमद नीर गँभीर जो भरे सो मिले समुंद ।
भरै ते भारी होइ रहे, छूँछे बाजहिं दुंद ॥11॥
(जत=जितनी, तत=उतनी, पानी मूल ….कोई=जो कोई विचार
कर देखे तो पानी ही सबका मूल है, अमृत-पान=अमृत पान के
लिये, दुंद=ठक ठक)