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प्रभु मेरे प्रीतम प्रान पियारे/नानकदेव

प्रभु मेरे प्रीतम प्रान पियारे।
प्रेम-भगति निज नाम दीजिये, द्याल अनुग्रह धारे॥

सुमिरौं चरन तिहारे प्रीतम, ह्रदै तिहारी आसा।
संत जनाँपै करौं बेनती, मन दरसन कौ प्यासा॥

बिछुरत मरन, जीवन हरि मिलते, जनको दरसन दीजै।
नाम अधार, जीवन-धन नानक प्रभु मेरे किरपा कीजै॥

लेखक

  • नानकदेव

    गुरु नानक देव जी (१५ अप्रैल १४६९–२२ सितम्बर १५३९) सिख धर्म के संस्थापक थे । उनका जन्म राय भोइ की तलवंडी (ननकाना साहब) में हुआ, जो कि पाकिस्तान के शेखूपुरे जिले में है । उन के पिता का नाम मेहता कल्याण दास बेदी (मेहता कालू) और नाम माता तृप्ता था । उनकी बड़ी बहन बीबी नानकी जी थे । उनका विवाह माता सुलक्खनी जी के साथ हुआ । उनके दो पुत्र बाबा श्री चंद जी और बाबा लखमी दास जी थे । १५०४ में वह बीबी नानकी जी के साथ सुलतान पुर लोधी चले गए, जहाँ उन्होंने कुछ देर नवाब दौलत खान लोधी के मोदीखाने में नौकरी की । उन्होंने भारत समेत दुनिया के कई देशों की चार लम्बी यात्राएं (उदासियाँ) भी कीं । उन्होंने कुल ९४७ शब्दों की रचना की । उन की प्रमुख रचनायें जपु(जी साहब), सिध गोसटि, आसा दी वार, दखनी ओअंकार आदि हैं।

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