धीरे धीरे आँख मूँदकर
समय चक्र चलता रहता है।
नित्य कहानी कहते कहते
सुख दुख सारे सहते सहते
सदियों से मुस्काती सरिता
चलती जाती बहते बहते
बंद सीपियों तक में देखो
मोती भी पलता रहता है।
समय—–
टूट कभी जाती है डाली
फूल तोड़कर हँसता माली
गिर जाते पतझड़ में पत्ते
अंतस में बस पीड़ा खाली
गैरों के हित खुशी खुशी पर
पेड़ सदा फलता रहता है।
समय——
देकर नेह समर्पण मन का
रोशन करता है घर सबका
जला जलाकर सदा स्वयं को
दंभ सदा हरता है तम का
जग में उजियारे की खातिर
दीपक बस जलता रहता है।
समय —–
सच्चा जीवन जीना इनसे
पीड़ाओं को पीना इनसे
आओ सीखें हम सब मिलकर
ज़ख्मों को भी सीना इनसे
समय भला कब हुआ किसी का
यह सबको छलता रहता है।
समय—–
—– छाया त्रिपाठी ओझा
समय चक्र/छाया त्रिपाठी ओझा