दोहा हिंदी काव्य विधा का अत्यंत सशक्त स्वतंत्र लघुरूपी छंद है ,जो सैकड़ों वर्षों से अपनी महत्ता को मनवाता आ रहा है । आकार में छोटा होने के बावजूद बड़ी खूबसूरती के साथ संसार के अधिकांश विषयों को अपने में सहज लेने की सामर्थ्य रखता है । दोहा प्राचीन काल से आज तक जन मानस के हृदय में रचा-बसा है और हिंदी कविता के आदिकाल से समकाल तक स्वयं को समयानुकूल बदलते हुए बड़ी सार्थकता के साथ उपस्थित होता रहा है । श्रेष्ठ दोहा अपनी मन मोहक लय और प्रासादिकता के कारण पाठक या श्रोता के हृदय पर सीधा प्रभाव डालता है । संक्षिप्तता और भावों की संश्लिष्टता के कारण स्मरण धर्मिता दोहे की सबसे बड़ी विशेषता है । इसी विशेषता के कारण आज भी कबीर, रहीम, तुलसी, बिहारी, वृन्द आदि के सैकड़ों दोहे जनमानस के हृदय पटल पर अंकित हैं । दोहा के संदर्भ में वरिष्ठ साहित्यकार श्री राजेंद्र वर्मा लिखते हैं – ‘एक अच्छे दोहे की रचना के लिए चार बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है : लय, तुकांत, भाषा और भाव-संयोजन’ । श्रेष्ठ दोहे की विशेषता बताते हुए वरिष्ठ दोहाकार जय चक्रवर्ती लिखते हैं- ‘दोहा अपनी बनावट और बुनावट में लघु-कायिक छंद है। तेरह-ग्यारह, तेरह-ग्यारह के सिर्फ चार चरणों (चौबीस मात्राओं) में आपको बात कहनी होती है। इसलिए एक अच्छे दोहे के लिए अनिवार्य है कि उसमें एक शब्द भी अनावश्यक अथवा भर्ती का नहीं होना चाहिए। हर शब्द अपनी जगह जीवंत और मुस्तैद दिखाई देना चाहिए। आप जो बात कहना चाहते हैं, वह पूरी समग्रता, स्पष्टता और संप्रेषणीयता के साथ उपस्थित होनी चाहिए।…. और सबसे बड़ी बात कि आपके दोहे की मारक क्षमता (किलिंग इंटेक्ट) तीव्र से तीव्रतर होनी चाहिए ताकि पढ़ने या सुनने वाले के दिलोदिमाग में दोहे में कहीं गई बात का असर देर तक बना रहे’ ।
हिंदी कविता में दोहा, पिछले पाँच दशकों से अपने पैनेपन और गहरी मार्मिकता के साथ लोकजीवन में पुनः अपनी सार्थकता साबित कर रहा है । समकालीन दोहे की इस रचनात्मक और लोकप्रियता को समझने और समझाने के लिए स्वयं दोहाकारों द्वारा पहले भी अनेक गंभीर और सार्थक प्रयास किए गए हैं । अनेक दोहाकारों के एकल दोहा संग्रह के साथ-साथ दर्जनों साझा दोहा संकलन भी प्रकाशित हुए हैं । वर्ष 2015 में वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरेराम समीप जी द्वारा 488 पृष्ठीय ‘समकालीन दोहा कोश‘ संपादित कर दोहे की विकास यात्रा में ऐतिहासिक कार्य संपन्न हुआ है। हिंदी की दर्जनों पत्रिकाओं ने दोहा विशेषांक निकाल कर दोहा लेखन को प्रोत्साहित करने का काम किया है । आज अनेक ‘वैब’ पत्रिकाएं भी दोहों को प्रमुखता के साथ प्रकाशित कर रही हैं । वर्तमान में दोहा लोकप्रियता के शिखर पर है । हर कोई दोहाकार बनना चाहता है । फेसबुक और व्हाट्सएप पर दोहाकारों के अनेक समूह संचालित हैं । इसी कारण दोहों का तेज रफ्तार से थोक में उत्पादन हो रहा है । उत्पादन की अधिकता के कारण दोहे की विशेषता अपरिलक्षित हो रही है । वरिष्ठ दोहाकार श्री रघुविंद्र यादव लिखते हैं- ‘दोहा आज लोकप्रियता के शिखर पर है इसलिए बहुत से लोग दोहा लिखना चाहते हैं लिखने का प्रयास भी करते हैं किंतु अधूरी जानकारी या गलत जानकारी के कारण वे सही दोहे नहीं लिख पाते’ । समकालीन दोहों में सपाट बयानी देखने को मिल रही है । दोहों में पुराने बिम्ब एवं प्रतीकों का प्रयोग के साथ-साथ जाय, पाय, लाय,लगाय, लेय, देय, होय, तोय , खोय, करत, क़हत, सुनत, होत जैसे तुकांत क्रिया-पदों का प्रयोग देखने को मिल रहा है, ये सब समकालीन दोहा की सेहत के लिए अच्छा नहीं है । दोहों का थोक में उत्पादन होने के कारण तुकांत दोष भी देखने को मिल रहे हैं । काफी विद्वान कथ्य व भाव की श्रेष्ठता के आगे शिल्प को कम महत्व देते हैं, जब कि तुकांत भी शिल्प का एक अंग है । दोहों में तुकांत दोष के निदान के लिए समकालीन वरिष्ठ दोहाकारों को एक मानक बनाने की आवश्यकता है । ऐसी भी बात नहीं कि अच्छे दोहे नहीं लिखा जा रहे फिर भी समकालीन दोहा को तराशने एवं संवारने की आवश्यकता है, जिससे नवोदित दोहाकारों का मार्गदर्शन हो सके । समकालीन दोहा को परिभाषित करते हुए वरिष्ठ दोहाकार श्री जय चक्रवर्ती लिखते हैं – ‘समकालीन दोहे का वैशिष्टय यह है कि इसमें हमारे समय की परिस्थितियों, जीवन संघर्षों , विसंगतियां, दुखों , अभावों और उनसे उपजी आम आदमी की पीड़ा,आक्रोश,क्षोभ के सशक्त स्वर की उपस्थिति प्रदर्शित होने के साथ-साथ मुक्ति के मार्ग की संभावनाएं भी दिखाई दें’ ।
साहित्य रत्न ई- पत्रिका का दोहा विशेषांक दोहे की विकास यात्रा में एक छोटा सा प्रयास है । इस लघु प्रयास को सफल बनाने में मार्गदर्शन करने के लिए वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्री राजेंद्र वर्मा जी और वरिष्ठ कवि व इतिहासकार आदरणीय डॉ जे.पी. बघेल जी का हृदय से आभार प्रकट करता हूं । इस दोहा विशेषांक के लिए समय निकालकर दोहा पर साक्षात्कार देने के लिए वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्री जय चक्रवर्ती जी का में विशेष रूप से आभार व्यक्त करता हूँ । वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्री कुँवर कुसुमेश जी, वरिष्ठ कवि श्री यादराम शर्मा जी, लोकप्रिय दोहाकार श्री रघुविंद्र यादव जी, घुमक्कड़ कवि श्री गाफिल स्वामी जी, श्री राजपाल सिंह गुलिया जी, डॉ. सुमन मिश्रा जी, श्री गोविंद सेन जी, श्री दिनेश रस्तोगी जी , वरिष्ठ कवि व चित्रकार श्री विज्ञान व्रत जी, श्रीमती ज्योतिर्मयी पंत जी, श्री त्रिलोक सिंह ठकुरेला जी, ऑस्ट्रेलिया प्रवासी श्री प्रगीत कुँअर और डॉ. भावना कुँअर जी के साथ-साथ उन सभी सम्मानित दोहाकार मित्रो का आभारी हूँ, जिन्होंने रचनात्मक सहयोग भेज कर मुझे कृतार्थ किया है । इस ‘दोहा विशेषांक’ में जो कुछ भी आपको अच्छा लगा वह सब दोहाकार मित्रों का है तथा जो भी गलत है उसका मैं जिम्मेदार हूँ । अंत में ‘साहित्य रत्न’ ई- पत्रिका के प्रबन्धक व प्रधान संपादक अनुज श्री सुरजीत मान जलईया सिंह को हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करता हूं , जिन्होंने इस ‘दोहा विशेषांक’ का अतिथि संपादक बनाकर मुझ नाचीज को आप जैसे सुधी दोहाकारों एवं पाठकों से रूबरू होने का अवसर प्रदान किया । ‘दोहा विशेषांक’ आपको कैसा लगा ? आपकी स्वस्थ प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा ।
शिव कुमार दीपक