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शायद अब  ये  हो  गई/कुँवर कुसुमेश

शायद अब  ये  हो  गई, वर्तमान  की  शान ।

फोटो खिंचवा लीजिए, जब भी करिए दान ।।-1

संविधान की दृष्टि में,सब हैं एक समान ।

चाहे निर्धन व्यक्ति हो, या कोई धनवान ।।-2

अगर चाहते आप हैं, सुख जीवन पर्यन्त ।

तो नेता बन जाइये, या फिर  साधू-सन्त ।।-3

राम तुम्हारी भी रही,  लीला  अपरंपार ।

एक दशानन मर गया, पैदा हुए  हज़ार ।।-4

पानी  को  बर्बाद  मत, करें  दोस्तों  आप ।

यह जीवन का मंत्र है, रट  लीजे  चुपचाप ।।-5

जीवन दर्शन दे गया, निर्धन एक फ़क़ीर ।

प्रेम रंग भाये जिसे, वह  है  संत  कबीर ।।-6

जाने कैसा  आ गया, भारत  में  भूचाल ।

नेता  मालामाल  हैं, जनता  है  कंगाल ।।-7

भूल  रहे  हैं  आजकल,  बच्चे  शिष्टाचार ।

जब से इनको हो गया, मोबाइल से प्यार ।।-8

जो  स्वदेश  के  वास्ते,  दे  देते  हैं  जान ।

उनसे बढ़ कर के नहीं, कोई हुआ महान ।।-9

उस रावण को बेवजह, कोस  रहे  हैं  आप ।

अब के रावण लग रहे, उस रावण  के बाप ।।-10

मैंने पूछा जब कभी, सबसे अच्छा कौन ।

माँ के सम्मुख हो गये, सारे  रिश्ते  मौन ।।-11

मन में जिज्ञासा लिये, आयेगा  बदलाव ।

दोहे लिखवाते रहे, हरे-भरे  कुछ  घाव ।।-12

कुँवर कुसुमेश

लेखक

  • कुँवर कुसुमेश

    कुँवर कुसुमेश जन्म-तिथि : 03.02.1950 जन्म-स्थान : लखनऊ पत्नी का नाम:स्व.श्रीमती पुष्पा कुँवर शिक्षा : एम.एससी. (गणित) पता : 4/738 विकास नगर, लखनऊ-226022 मोबा : 9415518546 ई-मेल id : kunwar.kusumesh@gmail. com संप्रति : भारतीय जीवन बीमा निगम से रिटायर्ड मण्डल प्रबंधक अदबी सफ़र : लगभग 35 वर्ष प्रकाशन/प्रसारण :- 1-अँधेरे भी उजाले भी (ग़ज़ल संग्रह) 1997 में प्रकाशित 2- पर्यावरणीय दोहे (दोहा संग्रह) 2000 में प्रकाशित 3-कुछ न हासिल हुआ (ग़ज़ल संग्रह) 2010 में प्रकाशित एवं अन्य

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