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भीतर भीतर रम गया/हरीलाल ‘मिलन ‘

भीतर भीतर रम गया, क्या  गृहस्थ क्या संत ।

न तो प्रेम का आदि है,  न  ही   प्रेम का अंत ।।-1

मन -मंदिर में थी बसी,  कोई    मूर्ति  महान ।

प्राण-प्रतिष्ठा कर गई,   अधरों   की मुस्कान ।।-2

सच ही कहा  कबीर  ने,  वही  सिद्ध  विद्वान ।

‘ढाई आखर ‘ प्रेम का,  जिसे  हो  गया  ज्ञान ।।-3

प्रेम  सृजन  का  सत्य  है,  प्रेम जगत आधार ।

प्रेम  चाह  का  मेघ  है,   प्रेम   सुखद बौछार ।।-4

बूंद बूंद‌‌  एकत्र   कर,     देती     आई    नीर ।

सरिता ही  लिखती  रही,  सागर की तकदीर ।।-5

दर्पण के आगे खड़ी,  वह   थी  भाव -विभोर ।

दृष्टि   अचानक  झुक  गई, पीछे था चितचोर ।।-6

हर्ष  मिले  या  शोक हों, दोनों   हों  स्वीकार ।

प्रेम  एक आवास है,  विरह –  मिलन दो द्वार ।।-7

सपनों के आकाश से ,  नयनों  की छत फांद ।

अंजुरी में  ले  चांदनी,   उतरा   मन   में चांद ।।-8

तेरी  हाथों   की   लगे, मधुर   प्रेम   की  खीर ।

राधा, मीरा, रुक्मणी,    तुझ  में   हर   तस्वीर ।।-9

खिली कुमुदिनी  प्यार की, जैसे खिला जहान ।

नयनों  में  मोती  दिखे,   अधरों  पर मुस्कान ।।-10

पुरवा   देतीं   दस्तकें,  पछुआ     करें  अधीर ।

किस  निष्ठुर  ने  फाड़  दी,  जोड़े  की तस्वीर ।।-11

प्रेम  चाहिए  इस तरह,     जीवन   में  भरपूर ।

साथ  रहे  ज्यों  अंत तक,  मांग  और  सिंदूर ।।-12

हरीलाल ‘मिलन ‘

लेखक

  • हरीलाल 'मिलन '

    हरीलाल 'मिलन ' पिता : स्व. राम दुलारे शर्मा माता. : स्व.राजकली देवी पत्नी : स्व . दुर्गावती शर्मा जन्म तिथि : 8 जुलाई 1954 संप्रति : श्रम प्रवर्तन अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त प्रकाशित कृतियां : -खंड काव्य 'परित्यक्ता ' (1995) गजल संग्रह 'वक्त रो रहा है ' (2003 ) गजल संग्रह में 'ये आंसू ' (2009 एवं 2016 ), उपन्यास '' म्रिया ' (2012 ) गीतकृति अंधेरे भी उजाले भी (2015 ) गीतकृति ' नमन भारत भारती ' (2017 ) कहानी संग्रह 'आखिरी झूठ ' (2018 ) कविता सग्रह 'कागज कलम कविता ' (2019 ) दोहा संग्रह 'दर्पण समय का ' (2020 ) समीक्षा / समालोचना 'मेरी परख ' (2021) महाकाव्य 'सांची कहे कबीर ' (2022 )

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