पानी तेरे नाम है, कितने-कितने रूप।
जहां नज़र डाली मिले, सारे रूप अनूप।।-1
है औषधि सम शुद्ध जल, तन को करे निरोग।
हो अशुद्ध तो जल यही, दे कितने ही रोग।।-2
पानी जमकर जब गिरे, बने वो ओला मीत।
गिरकर जमता तो बरफ, कहें उसे यह रीत।।-3
पानी हो यदि फूल पर, कहलाता वह ओस।
निकले फूलों से बने, इत्र उड़ाए होश।।-4
बहता पानी है नदी, जमा हुआ तो झील।
भंवर बने तो तुरत ही, जाता जीवन लील।।-5
पानी है यदि शुद्धतम, तो गंगा की धार।
हो अशुद्ध तो दे सदा, तन को कष्ट अपार ।।-6
मिले दूध में तो बने, पानी दूध समान।
मय में मिलकर मय बने, खोकर अपना मान।।-7
कहते हैं इस सृष्टि का, पानी है प्रारंभ।
लेकिन रखता यह नहीं, मन में कोई दम्भ।।-8
पानी से ही यह धरा, लगती जैसे पर्व।
अपनी पर आ जाए तो, टूटें सबके गर्व।।-9
पांच तत्व हैं प्रकृति में, कहता है विज्ञान।
पानी ही इनमें मगर, है प्रधान लें जान।।-10
पानी के सम्मान को, कैसे जाएं भूल।
कहते पानीदार को, एक शब्द है शूल।।-11
सागर मंथन की कथा, का इतना सा सार।
जो मन को मथ ले मिले, उसको रतन अपार।।-12
सुशील सरित