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दीन व्यक्ति पर कीजिए/दिनेश प्रताप सिंह चौहान

रावण के वध में भला, क्या था मेरा काम।

‘मैं’ ने  मारा  था  उसे, बोले  माँ  से  राम।।-1

कई जन्म के पुण्य जब, फलते हैं सरकार।

तब इस मानव योनि का, दे ईश्वर उपहार।।-2

दौलत में जो है नशा, कब दे  सकी  शराब।

माया का होता नशा, सबसे अधिक खराब।।-3

सेवा मानव जाति की, मानें पुण्य महान।

इससे बड़ा न हो सके, यज्ञ और तप दान।।-4

गोरा  तन  इंसान  का, रखता  नहीं  महत्व।

कितना उज्वल मन रहे, यह असली है तत्व।।-5

अगर सत्य का धर्म का, हो कोई संघर्ष।

भले अकेला तू रहे, रण में उतर सहर्ष।।-6

ज्ञान,शील,गुण,धर्म, तप, और न विद्या, दान ।

देह भले हो मनुज की, उसको पशु ही जान।।-7

दीन व्यक्ति पर कीजिए, कभी न अत्याचार।

हाय ! दीन  इंसान  की,  करती  बंटाधार।।-8

करके तिरछी जब नज़र , करे कामिनी बात।

दिल की धड़कन क्या बढ़ें, काँपे सारा गात।।-9

खोजा तब जाकर कहीं, हमने पाया राज।

करती थोथी वस्तुएं, सदा अधिक आवाज।।-10

जनता को भरमा रहे, बोल झूठ सौ टंच।

सत्ता  पाने  को  सदा, नेता  करे  प्रपंच।।-11

द्वंद्व युद्ध में भीम ने, युद्ध नियम को छोड़।

दुर्योधन की जाँघ को, दिया गदा से तोड़।।-12

दिनेश प्रताप सिंह चौहान

लेखक

  • दिनेश प्रताप सिंह चौहान

    दिनेश प्रताप सिंह चौहान पिता : स्व. आनंदपाल सिंह चौहान माता: स्व. रामा बाई चौहान जन्मतिथि : 14/11/ 1954 शिक्षा: बीए, एल एल बी अन्य: मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के माध्यम से क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में स्टेट पैनल क्रिकेट अंपायर, कार्य: 1978 तक एटा जिला न्यायालय में वकालत, दिसंबर 1978 से मई 1981 तक पश्चिम रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर, मई 1981 से नवंबर 2014 तक बैंक ऑफ बड़ौदा में कार्य और वहां से प्रबंधक के रूप में सेवा निवृत. साहित्यिक कार्य: "तहलका" में काव्य मय टिप्पणी लेखन, डायमंड पॉकेट बुक्स में व्यंग्य लेख का प्रकाशन। बैंक ऑफ बड़ौदा की एक अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में काव्य रचना का प्रकाशन।

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