रावण के वध में भला, क्या था मेरा काम।
‘मैं’ ने मारा था उसे, बोले माँ से राम।।-1
कई जन्म के पुण्य जब, फलते हैं सरकार।
तब इस मानव योनि का, दे ईश्वर उपहार।।-2
दौलत में जो है नशा, कब दे सकी शराब।
माया का होता नशा, सबसे अधिक खराब।।-3
सेवा मानव जाति की, मानें पुण्य महान।
इससे बड़ा न हो सके, यज्ञ और तप दान।।-4
गोरा तन इंसान का, रखता नहीं महत्व।
कितना उज्वल मन रहे, यह असली है तत्व।।-5
अगर सत्य का धर्म का, हो कोई संघर्ष।
भले अकेला तू रहे, रण में उतर सहर्ष।।-6
ज्ञान,शील,गुण,धर्म, तप, और न विद्या, दान ।
देह भले हो मनुज की, उसको पशु ही जान।।-7
दीन व्यक्ति पर कीजिए, कभी न अत्याचार।
हाय ! दीन इंसान की, करती बंटाधार।।-8
करके तिरछी जब नज़र , करे कामिनी बात।
दिल की धड़कन क्या बढ़ें, काँपे सारा गात।।-9
खोजा तब जाकर कहीं, हमने पाया राज।
करती थोथी वस्तुएं, सदा अधिक आवाज।।-10
जनता को भरमा रहे, बोल झूठ सौ टंच।
सत्ता पाने को सदा, नेता करे प्रपंच।।-11
द्वंद्व युद्ध में भीम ने, युद्ध नियम को छोड़।
दुर्योधन की जाँघ को, दिया गदा से तोड़।।-12
दिनेश प्रताप सिंह चौहान