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जीवनदाता प्रकृति से/ज्योतिर्मयी पन्त

जीवनदाता प्रकृति से, करें  नहीं  खिलवाड़ ।

सारे स्वारथ सिद्ध हों , सदा उसी की आड़ ।।-1

नदियां  बहती  थी  यहां ,   लेकर   शीतल  नीर ।

कलुषित हम ने कर दिया, समझ सके कब पीर ।।-2

कूड़ा  करकट  गंदगी,  फेंकी  नदिया  तीर ।

जल को दूषित कर चले, फोड़ रहे तकदीर ।।-3

धूल धुएँ  से भर  रही, शहरों  की  अब  वायु ।

जीना तो मुश्किल  हुआ, अल्प हो रही आयु ।।-4

खनन  करें  पर्वत  जमीं, दोहन  करते  नीर ।

तभी प्रकृति से मिल रही, भूकम्पों  की पीर ।।-5

जंगल काटे शहर हित, बिके खेत खलिहान ।

प्रकृति संपदा लूट कर, मानव  के  मुस्कान ।।-6

प्लास्टिक के उपयोग से, होता  है  नुकसान ।

पशु पक्षी या मनुज की, मुश्किल होगी जान ।।-7

जन जन में आक्रोश है, समझ न आई भूल ।

रौंदा है जब प्रकृति को, झेल रहे  अब शूल ।।-8

स्वच्छ धरा हम दे सकें, सुखी  रहे  संतान ।

वृक्षारोपण कीजिए, फैले  हरित  वितान ।।-9

धरा, गगन, जल, वायु ही, जीवन के आधार ।

‘पन्त’ इन्ही के कोप से, कांप  जाय  संसार ।।-10

इक दूजे  के संग  ही, जीना  है  आसान ।

‘पन्त’ खुले हैं प्रेम से, उन्नति  के  सोपान ।।-11

ज्योतिर्मयी पन्त

लेखक

  • ज्योतिर्मयी पन्त

    ज्योतिर्मयी पन्त जन्मतिथि-17/04/1945 जन्म स्थान -नैनीताल,उत्तराखण्ड शिक्षा - एम..ए., एम .फिल. संस्कृत प्रकाशित कृतियाँ :- `ओ माँ `नामक एक संग्रह प्रकाशित । कई पत्र -पत्रिकाओं ,ई -पत्रिकाओं में कहानियाँ,कवितायेँ व लेख प्रकाशित.(हिन्दी और कुमाँउनी ) कविता ,हाइकु,तांका,वर्ण पिरामिड ,दोहा ,गीतिका,मुक्तक संकलनो में सहभागिता । हिंदी के प्रथम सामूहिक उपन्यास 'खट्टे मीठे रिश्ते 'में सहभागी . 2010_ 2011 में उद्भव मानव सेवा सम्मान प्राप्त. शोभना काव्य सृजन सम्मान 2012

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