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मुझे इश्क़ ए ज़लील में/मो. शकील अख़्तर

आहों के सिलसिले मेरे सीने में गाड़ कर
वो ले गया है जिस्म से दिल को उखाड़ कर

ख़ुशबू तेरे बदन की निकाली न जा सकी
हर चंद फेंक दी तेरी यादों को फ़ाड़ कर

मैं हूं बुरा तो क्या सभी अच्छों में हैं शुमार
हर तंज़ को मैं रखता हूं अक्सर पछाड़ कर

रहने दे मुज़्तरिब मुझे इश्क़ ए ज़लील में
रातें तवील कर सभी दिन को पहाड़ कर

इक बोसा सब्त करने का एलान कर दिया
होंटों का जिस ने रख दिया हुलिया बिगाड़ कर

अब ख़ाक हो न जाएं तमन्नाएं वस्ल की
जिस्मों के दरमियां नहीं इतनी दराड़ कर

रातों को पूछती है तलब मुझ से ये सवाल
क्यों हिज़्र ने रखा मेरे घर को उजाड़ कर

पत्थर के जिस्म में नहीं अख़्तर बचा है कुछ
क्या फ़ायदा है जिस्म को अब  छेड़ छाड़ कर

मो. शकील अख़्तर

लेखक

  • मो. शकील अख़्तर

    संक्षिप्त परिचय नाम : मो. शकील अख़्तर तख़ल्लुस :अख़्तर जन्म : 04.02.1955 पता: उर्दू बाज़ार ,दरभंगा           बिहार 846004 कार्य :  सेवा निवृत्त बैंक प्रबंधक रचना: विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में                 प्रकाशित            दो साझा ग़ज़ल संग्रहों में प्रकाशित  कई ग़ज़लें           एक ग़ज़ल संग्रह " एहसास की ख़ुशबू" नाम से,            जिज्ञासा प्रकाशन , ग़ाज़ियाबाद द्वारा प्रकाशित

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