घर के बाहर निकलते वक्त सुनयना दरवाजे पर कुछ याद करके रुकी। बिस्तर पर अधलेटी होकर पढ़ाई कर रही गुड्डी से बोली,’’देखो ठीक पॉच मिनट बाद गैस बन्द कर देना। प्रेशर कुकर चढ़ा रखा है।’’ उसने कोई जवाब नहीं दिया और अपने काम में लगी रही। ‘’अरी जरा मेरी बात सुन। पॉच मिनट बाद गैस बन्द कर देना।’’ सुनयना ने जरा तेज आवाज में कहा। बिना देखे गुड्डी ने जवाब दिया। ”अच्छा कर लूंगी।”
गैस का सिलेण्डर बुक करने के लिए कई बार फोन करने का प्रयास किया गया लेकिन नम्बर लगता ही नहीं था। सुनयना ने सड़क पर आते-जाते सिलेण्डर वालों को रोककर सिलेण्डर देने का अनुरोध किया। सबने हॉ-हॉ कहके आश्वासन दिया पर किसी ने घर नहीं पहॅुचाया। इसलिए वह सामने गैस एजेन्सी में काम करने वाली की पत्नी के पास पहॅुंची। ‘’बहनजी जरा भाई साहब से कहलवा कर सिलेण्डर मंगवा दीजिए। बड़ी मुसीबत है। कोई सुनने को तैयार नहीं है।’’
वह मुस्करायी। ‘’हो जाएगा। चिन्ता मत कीजिए। बैठिए पानी पीजिए।’’ सुनयना को काम करवाना था। इसलिए वहाँ बैठकर थोड़ी देर हाँ जी, हाँ जी भी करनी पड़ती। जब उसने चाय पिलाने की पेशकश की तो वह झटके से उठ गयी। ‘’नहीं बहनजी लड़की को छोडकर आयी हॅू। अकेले वह पढ़ती नहीं है।’’
एक अटका हुआ काम निपट गया। वह तनिक निश्चिंत होकर घर लौटी। किचन में देखा कि कुछ जलने की गंध आ रही है। कुकर का नॉब हटाकर भाप निकाली और ढ़क्कन खोला तो पाया कि तली में कुछ चावल जलकर चिपके हुए थे। वह झल्लायी। ‘’अरे गुड्डी तूने गैस बन्द नहीं किया था?’’
‘’किया तो था।’’
‘’तो फिर देर से किया होगा। हाय राम यह लड़की कहॉ जाएगी। अब खाना यही….। किसी काम की नहीं है।‘’ उसका गुस्सा कम नहीं हो रहा था।
‘’ममी मैंने बन्द तो कर दिया था।’’ गुड्डी अपने को गलत मानने को तैयार न थी।
‘’पॉच मिनट के अन्दर….?’’ सुनयना का क्रोध और बढ़ा। वह उसके पास आ गयी। नजदीक आकर देखा कि वह ड्राइंग कर रही थी। ‘’देखो महारानी जी को! मैं सोच रही थी कि बेटी पढ़ाई कर रही है और ये कागज गंदे करने में लगी है।’’
‘’ममी अभी तो शुरु किया है। तबसे पढ़ रही थी।’’ उसे सफाई दी।
सर पर हाथ रखकर सुनयना बोली,’’जा अपनी उम्र के बच्चों को देखा। तुम अब इतनी छोटी भी नहीं रही। अगले साल सेवेंथ में जाओगी। पल्लवी, श्रेया वगैरह सबके कितने अच्छे मार्कस आए हैं। उनका एटिकेट देखो। एक तुम हो कि जरा भी होश नहीं रहता है। स्कूल बैग कहॉ पड़ा है, जूते किधर हैं कुछ पता नहीं।’’ ममी को नाराज देखकर गुड्डी ने ड्राइंग का सामा समेटा और कोर्स की किताबें लेने चली गयी। जाते हुए उसने अपनी ममी की वाणी सुनी। ‘’इस कम्पीडिशन के जमाने में जो सावधान नहीं रहेगा वह हमेशा के लिए पिछड़ जाएगा।’’
गुड्डी की स्कूल की पढ़ाई से वह खुश नहीं थी। शाम को ऑफिस से आने के बाद सुरेन्द्र से ही सारा होमवर्क कराना पड़ता था। खासकर उसका मैथस् और इंग्लिश कमजोर था। साइंस में भी मदद की जरुरत थी। अब क्या बचा। बाकी सब्जेक्टस् तो सारे स्टूडेन्टस खुद कर लेते हैं। क्लास में टीचर सोए रहते हैं। न ग्रामर समझाएगें न ही एलजेबरा। बस खानापूर्ति और बेमतलब के तामझाम करेगें। इसलिए उसे पिछले दिनों ट्यूशन लगवाया था। आखिर मॉ-बाप भी कितना करें। ट्यूशन में कम से कम स्टूडेन्ट अपनी मुख्य दिक्कतें बयान करके सुलझा सकता है। गुड्डी के साथ वह कुछेक अलग तरह की समस्याऍ देख रही थी। एकाग्रता का नितांत अभाव, बात न मानना, अपने खेलकूद के आगे किसी चीज पर ध्यान न देना आदि। टेबल के नीचे से कागज की कतरनें, फाड़े गए पन्ने और गुडि़या की सजावट की चीजें मिलती। सुरेन्द्र से जब इसकी चर्चा की तो वे शांत स्वर में बोले कि बचपना है। धीरे-धीरे दूर हो जाएगा।
‘’खाक दूर हो जाएगा।’’ वह झॅुझलायी। ‘’बचपना बस इसी के लिए है? सौरभ की मम्मी सारे मुहल्ले में यह सुनाती फिर रही थी कि उसके बेटे का क्लास में फस्ट पोजिशन आया है। इसी की उम्र की पल्लवी को डांस कम्पीडिशन में एवार्ड मिला है। एक ये है। जब देखो तब पार्क में अपने से छोटी उम्र के बच्चों के साथ भी खेलती रहती है। पता नहीं कब बढ़ी होगी। हरदम पार्क में खेलना ठीक है? न जाने कैसे-कैसे लोग आते हैं।’’
एक दिन उसे अपने पास बिठाकर सुनयना ने बड़े प्यार से समझाया। ‘’देखो तुम्हारे पापा ने कितनी कोशिश के बाद अच्छी नौकरी पाई है। पहले हमारा अपना घर नहीं था। अब जाकर लिया है। बेटा जिन्दगी में बिना मेहनत के कुछ नहीं मिलता।’’
‘’ममी अगर मैं अच्छे मार्कस् लाई तो मुझे नानाजी के घर ले चलोगी?’’ वह यह सुनकर हतप्रभ रह गयी। उनका देहांत हुए साल भर हो चुका था। अब उस उजाड़ घर में कौन रहता है। बड़ा सा हवेलीनुमा घर भॉय-भॉय करता रहता है। न वहॉ नाना रहे और न ही नानी मिलेगीं। यह लड़की क्या बोल रही है? अनायास ही सुनयना की ऑंखें नम हो गयीं। ‘’अब वहॉ जाकर क्या मिलेगा बेटा?…..वहॉ कौन बचा है?’’
‘’नहीं ममी मुझे बस नानाजी का घर देखना है।’’ वह फिर भी तर्कातीत हठ करती हुई बोली। ‘’मैं उनके रहने का कमरा, पूजा वाली कोठरी सब देखूगीं। गाय कहॉ पर बॉधी जाती थी मुझे वो भी देखना है। ममी मैं ये सब देखकर वापस आ जाऊगी। प्रॉमिस… प्लीज…।’’ वह उससे लिपटकर अनुनय करने लगी। ‘’अच्छा चल देखते हैं।’’ उसे कुछ समझ न आने पर उसे टरकाना चाहा।
‘’नहीं ममी आप बहुत झूठ बोलती हो। पिछली बार आप खुद चली गयी थीं। मुझे नहीं ले गयी। प्रॉमिस किया था कि जरुर ले जाउगी लेकिन नहीं ले गयी।’’ वह ठुनकने लगी। हे भगवान इस लड़की का क्या करे। वहॉ जाना कितना जरुरी था यह वह क्या जाने। ऊधर की पॉलिटिक्स कैसी चल रही है यह मैं जानती हॅू। मॉ-बाप के न रहने पर सारे रिश्तेदार जमीन-जायदाद पर गिद्द द्दष्टि जमाए हैं। कब मौका लगे कि हाथ साफ करे। बिना वहॉ का मसला सुलझाए कैसे काम चलेगा। भईया को भी इसलिए उधर आना पड़ा। कौन वहॉ हर गर्मी की छुट्टी में जाना हो पाएगा। आखिरी दौरा ही समझो। उधर खुद रहने का ठिकाना नहीं। क्या बनाओ, कैसे खाओ। बच्ची को कैसे लेकर जाते? कौन है पूछने वाला? पहले वाली ठसक से अब नहीं जा सकती। मॉ-बाप के बगैर औरत का मायके पर क्या हक?
इंसान अपने प्रारंभिक जीवन की स्मृतियों को ताउम्र याद रखता है। कई बार यह आदत मुसीबत बन जाती है। अब गुड्डी को ही लीजिए। ननिहाल के हर बात की चर्चा करती है। गर्मी की लम्बी छुट्टी में जब जाती थी तो वनमुर्गी की तरह निद्धन्द्ध विचरती थी। यहॉ फ्लैट के बंद माहौल में जैसे समय कटती है। मन लगाने के लिए यातो टी.वी. से चिपकी रहेगी या फिर फालतू में ड्राइंग-वाइंग करके पन्ने खराब करेगी। इस मामले में उसका छोटा वाला गुल्लू बिल्कुल सही है। न केवल इसका जन्म यहाँ हुआ है बल्कि बचपन भी यही व्यतीत हुआ है इसलिए यादों की सलीब लादना उसे नहीं आता। दिन भर खेलता-कूदता है। छोटी क्लास में है। ज्यादा सिलेबस नहीं है। थोड़ा बहुत पढ़ भी लेता है। यहीं की भाषा व बोली बोलता है। ज्यादा से ज्यादा अपने स्कूल के दोस्तों की बात करता है। कौन नाना और कौन मामा यह उसे याद नहीं है। बस मॉ-बाप और दीदी ही उसकी दुनिया है। सुरेन्द्र से वह कतिपय अवसर पर गुड्डी के व्यवहार की चर्चा कर चुकी थी। वे सारी बात सुनकर गंभीतापूर्वक कहते। ‘’चिन्ता की बात नहीं है। यह सब नॉरमल है। बस खेलकूद के साथ-साथ पढ़ाई-लिखाई भी चलती रहे।….इसके दोस्त वगैरह है?’’
‘’ हाँ,’’ सुनयना ने कहा,’’सामने वाली की बेटियों से अच्छी पटती है। रोज शाम को साथ खेलते हैं।’’
कुर्सी पर बैठकर चावल चुनती सुनयना से लिपटकर गुड्डी बोली,’’ममी मुझे कुछ चावल दो ना।’’
‘’क्या करोगी इसका?’’
‘’गौरेया को खिलाना है।’’
उसे थोड़े से चावल देकर वह मुस्करायी। चावल लेकर जाने की बजाए गुड्डी बोली,’’ममी हम नानाजी के घर कब चलेगें? वे मुझे व्हाइट रसगुल्ले खिलाते थे। वहॉ जाने का बहुत मन करता है। जब भी कहती थी कि नानाजी ला दीजिए तो वे हमेशा लाकर देते थे।’’ सुनयना भावुक हो गयी। ‘’बेटा अब नानानी कहॉ रहे? मैं तुम्हारे लिए शाम को बाजार से ले आउॅगी।….पर ज्यादा मत खाना। यह सब खाकर मोटी हो जाओगी। बनारस वाली मौसी के बच्चों की तरह। एक बार वजन बढ़ जाए तो बड़ी दिक्कत होती है उसे कम करने में।’’ ममी को डिमांड मानने के बाद उस पर शर्ते लगाना उसे अच्छा तो नहीं लगा पर चलो खाने को तो मिलेगा। वह भाग कर दीवाल पर चावल बिखेरने चली गयी। वहॉ उसने पहले से एक कटोरे में पानी भी भर कर रखा था। काफी इंतजार करने के बाद भी जब कोई चिडि़या नहीं आई तो वह दुबारा अपनी मॉ के पास गयी। ‘’ममी देखो ना एक भी गौरेया नहीं आयी। एक बार मुझे दिखी थी पर हमेशा नहीं मिलती। मुझे नानाजी के घर क्यों नहीं ले जाती? वहॉ ढ़ेर सारी गौरेया हैं। मैं उन्हें छत पर चावल खिलाती थी। पीने के लिए दीया में पानी रख देती थी। वे आकर खा-पी कर चली जाती थीं। पता है….एक बार गौरेया तो बिल्कुल मेरे पास तक आ गयी थी। मन किया कि उसे छू लॅू पर वह उड़ जाती इसलिए मैंने ऐसा नहीं किया। ममी बताओ ना हमारे घर में कोई चिडि़या क्यों नहीं आती है?’’ सुनयना क्या बोलती। कैसे बताए कि आज के बिल्डि़गों की आधुनिक स्लीम डिजाइन में उनके घोंसलों के लिए कोई जगह नहीं होती है। या फिर यह किसी प्रदूषण अथवा कीटनाशक का प्रभाव होगा कि उन्हें अपनी खुराक नहीं मिल पा रही होगी। पहले की इमारतों की दीवालों, ऑगन, बिजली के तारों के बेतरतीब फैलाव में इतनी जगह होती थी कि वे अपना घोंसला बना सके। तब वे बिल्कुल घरेलू लगती थीं।
सुनयना को अभी तक याद था कि शादी के पहले उसके मायके में काम करने वाली एक बूढ़ी नौकरानी कहती थी कि इंसान के बच्चे की आत्मा चिडि़या के घोंसले में पनपती है।
सुरेन्द्र के ऑफिस में एक सहकर्मी ने अपने बेटे के मनोवांछित कॉलेज में पसंदीदा सब्जेक्ट के साथ प्रवेश पर मिठाई बॉटी थी। सुरेन्द्र भाई लड़के का कैरियर सिक्योर हो गया। मेरे दिल से बड़ा बोझ हट गया है। यह बात उन्होंने घर आकर बातों के दरम्यान सुनयना से बतायी। वह सोचती रही। फिर कहने लगी,’’देखो मुझे लगता है कि गुड्डी का स्कूल अच्छा नहीं है। पिछले पैरेन्टस् टीचर मीटिंग में जब हम लोग क्लास में गए तो बच्चे कितना शोर मचा रहे थे। टीचर वहीं मौजूद थी लेकिन अपने में मगन। मेरी सहेली का बेटा ग्रीनफिल्ड में है। बता रही थी कि पढ़ाई का स्टैण्डर्ड बेहद हाई है। डिस्पिलिन इतना कि क्या मजाल क्लास और स्कूल कैम्पस में कोई ऐसी वैसी हरकत करे।’’
सुरेन्द्र ने उसकी बात धैर्यपूर्वक सुनकर कहा,’’केवल स्कूल ही सब कुछ नहीं होता है….बहुत कुछ घर के माहौल और बच्चे पर डिपेंड करता है। पुराने वाले स्कूल से भी तुमने यही कहकर इसका नाम कटवाया था। लेकिन दोनों के रिजल्ट में मुझे कुछ खास फर्क नहीं दिखता।’’ पति से पूर्णतया सहमत न होते हुए भी वह चुप रही। शायद उसे कोई बेहतर विकल्प नहीं दिख रहा था। पत्नी की चिन्ता को गंभीरता से लेते हुए सुरेन्द्र ने विचारमग्न मुद्रा में कहा,’’देखो हॉस्टल का पता करते हैं। वहॉ के डिस्पिलिन में पढ़ाई ठीक होगी।’’ सुनयना ने विषय से हटकर एक बात यह बतायी कि भईया का फोन आया था। कह रहे थे कि बाबूजी का मकान बेच देने में ही भलाई है। इतनी दूर से वहॉ का मामला सॅभालना मुमकिन नहीं है। खुराफात करने वाले कई हैं।
रात को सुरेन्द्र ने गुड्डी को बुलाया और प्यार से उसकी पढ़ाई का हाल पूछा। ‘’पापा मेरे सारे सब्जेक्टस् में बहुत अच्छे मार्कस् आए हैं। पता है इंग्लिश वाली मैम ने मुझे वैरी गुड दिया।’’ फिर वह विषय से तनिक परे हटकर बोली,’’पापा मुझे स्काउट्स में एडमिशन करवा दीजिए ना। बड़ा मजा आता है। सारे बच्चे मजे करते हैं। नाश्ता भी स्कूल से मिलेगा।’’
‘’ठीक है बेटा करवा देगें,’’ वे बोले। ‘’लेकिन मार्कस् अच्छे लाने का मतलब सब्जेक्टस् को पूरा समझना नहीं है। तुम्हें इंग्लिश और मैथस् में काफी प्रैक्टिस करनी पड़ेगी। बेटा आगे की क्लास में सिलेबस और मुश्किल होगा। बचपना छोड़कर तैयारी करो।’’
वह अपनी रौ में थी। ‘’पापा मैं पढ़ती तो हॅू। पल्लवी, श्रेया इन सबके मुकाबले मेरे मार्कस् कम नहीं हैं….।’’
‘’मैंने कब कहा कि तुम पढ़ती नहीं हो।’’ सुरेन्द्र ने बीच में हस्तक्षेप किया। उनका तरीका सुनयना की तरह भावप्रवण न होकर तार्किक होता था। ‘’लेकिन बस इतने से काम नहीं चलेगा। कोर्स की किताबों के अलावा खाली वक्त में जी.के. इम्प्रूव करो। जहॉ जरुरत पड़े मुझसे पूछो।’’ कुछ समय के हितोपदेश के पश्चात् उन्होंने अपनी सुविधानुसार बात खत्म करते हुए उससे कहा। ‘’अच्छा अब जाकर आराम करो। कल स्कूल है।’’
वह जाने लगी। सहसा पीछे मुड़कर बोली, ‘’पापा मुझे व्हाइट वाला रसगुल्ला खाना है। वही जो नानाजी मेरे लिए लाते थे। मुझे बहुत पसंद है। प्लीज… पापा।’’ सुरेन्द्र की गुरु गंभीर मुद्रा में उसकी इस मॉग से परिवर्तन आया। ‘’ठीक है बेटा। ला दॅूगा।’’
गुड्डी बिस्तर पर गयी। लेकिन जाते ही सो नहीं गयी। गुल्लू के साथ किस्से-कहानी कहने लगी। कुछ अपने खेलकूद की बातें भी होने लगीं। ‘’अच्छा तू बता कोई दुनिया से आउट कब होता है।’’ नन्हा गुल्लु सोचता रहा फिर ऑखें मटकाकर बोला,’’जब वह भगवान जी के पास चला जाता है।’’
‘’हट…जब वह स्पेस में जाता है।’’ वह खिलखिलाकर हॅस पड़ी। वह भी पूरी बात समझते हुए भी हॅसने लगा।
इधर सुरेन्द्र गुड्डी के स्टडी टेबल पर गए। उसकी किताबों-कॉपियों को देखते-पलटते उन्हें गत्ते के टुकड़ों पर बनी हुई ड्राइंग मिली। कुछ जानवरों की थी तो एक पर घर के समस्त सदस्यों की तस्वीर बनी थी। लिखा था- पापा, ममी, मैं और गुल्लु। हाथ से बनी एक छोटी सी डायरी भी मिली। उसने कागज काट कर बनायी थी। उसमें घर का फोन नम्बर, ममी-पापा के मोबाइल नम्बर और स्कूल के कुछ बच्चों के नाम व फोन नम्बर लिखे हुए थे। ऊपर लिखा था माई स्मॉल डायरी। यह सब देखकर उन्हें अच्छा भी लग रहा था पर ऐसे कैसे काम चलेगा? उसे अब सीरियस हो जाना चाहिए। वे ये सारी सामग्री अपने साथ ले गए। कोई जरुरत नहीं है इन सबकी।
तभी उधर से सुनयना आई। ‘’मैं आपको बुलाने जा रही थी। बिजी देखा तो खुद चली आयी। जरा ये देखिए। मुझे अपने घर के मंदिर के पास से मिला है।‘’ उनकी तरफ एक लिफाफा बढ़ाया। सुरेन्द्र ने उसे खोला। गुड्डी की लिखावट का एक पत्र जैसा कुछ था। नाना जी मैं आपके घर आना चाहती हॅू लेकिन ममी मुझे आने नहीं दे रही है। खुद अकेले चली गयी। मुझे आपके घर में रहा है। क्या मैं रह सकती हॅू? मुझे वहॉ जाने का मन तो बहुत है पर कैसे आऊँ? आप ही बता दीजिए। फिर आप भूत बनकर मुझे व्हाइट वाला रसगुल्ला खिला देना। और अपने साथ नानी जी को भी लाना जिससे मैं उनसे मिल सकॅू। नाना जी आप पक्का आना या तो फिर अपने दोस्त को भेज देना। मैं उनसे आपका हालचाल पॅूछ लॅूगी। और नाना जी मुझे भी अपने पास जल्दी से बुला लेना। हमलोग खूब मजा करेगें। आपकी गुड्डी।
सारा पढ़ लेने के बाद उन्होंने लिफाफे को उलट-पुलट कर देखा। उस पर लिखा था नाना जी के लिए। साथ में उनका नाम हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में आधा-आधा लिखा था। फ्रॉम गुड्डी उनकी नतिनी। पोस्टमैन- हनुमान जी। लिफाफा गन्दा हो चुका था। काफी दिन पहले का रखा हुआ होगा। सुनयना ने उन्हें चिठ्ठी समाप्त करता देखकर कहा। ‘’इसके साथ एक टॉफी भी रखी हुई थी।’’
सुरेन्द्र कमरे में बगैर कुछ बोले टहलने लगे। सुनयना भी मौन थी। सोच रही थी कि पति की तरफ से कोई प्रतिक्रिया सुनने को मिले। वे उसकी ओर देखने लगे। अपनी पत्नी से आशा कर रहे थे कि वह उनके मन को शांत करे। सहसा कुछ विचार करके उन्होंने गुड्डी के स्टडी टेबल से उठाए सारे सामान को वापस उनके नियत स्थान पर सहेज कर रख दिया।
मनीष कुमार सिंह