+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

गँवार/नगेन्द्र फौजदार

अमावस्या की सघन होती रात के अँधेरे में एक आशा की किरण ढूँढ़ रहे रोहित को — जो कि एक ३० वर्षीय बेरोजग़ार अध्यापक है — आज एक नंगी सच्चाई अन्दर तक बोझिल कर रही थी !
एक तरफ, हज़ारों विद्यार्थियों को शिक्षक का आदर्श रूप दिखाने वाले उच्च शिक्षा प्राप्त वरिष्ठ अध्यापक ‘अ’ जी !
दूसरी तरफ उनका एक तथाकथित छोटा भाई ‘क’ जो कि माध्यमिक परीक्षा भी उत्तीर्ण नहीं कर सका और जिसे इस तकनीकि के दौर में ‘अनपढ़’ की संज्ञा भी दी जाए तो कोई अतिशयता नहीं होगी !
‘अ’ जी ने अपनी ही बेटी को — जो कि स्वयं एक तीन वर्षीय बेटी की माँ है — गर्भपात/कन्या भ्रूणहत्या के लिए भरपूर सहयोग व प्रोत्साहन दिया और उनकी विद्वत्पट्टिका पर एक लघु-पताका आरोपित कर दी गई !
‘क’ ने अपनी क्रमशः चौथी बेटी का यथाविधि यथासामर्थ्य पहला जन्मदिन मनाया और सभ्य-समाज के द्वारा आलोचना और उपहास का पीड़ित पात्र सिद्ध हुआ !
अब रोहित सोच रहा है कि ‘गँवार’ की संज्ञा किसे दी जाए ?
‘अ’ जी को जो अपने श्रीमुख से गर्वित स्वर में कहते हैं कि ”लड़कियों के भी कहीं जन्मदिन मनाए जाते हैं !”
या
‘क’ को जो आहत पर आत्मविश्वास से लबरेज़ सधी हुई वाणी में तर्क प्रस्तुत करता है कि ” मेरे लिए तो लड़का-लड़की में कोई अन्तर नहीं, दोनों समान स्नेह के अधिकारी हैं !”
पता नहीं किस अनुभवी-भुक्तभोगी ने दो पंक्तियाँ फेंक मारी जो रोहित के मन-मस्तिष्क को अतिविचलित कर देती हैं !
” जाहिलों में नहीं मिले इतने…
जितने जाहिल पढ़े-लिखों में मिले !”

_® नगेन्द्र फौजदार

लेखक

गँवार/नगेन्द्र फौजदार

बहुवचन: 2 विचार “गँवार/नगेन्द्र फौजदार

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

×