वक़्त के साथ में कायदे बदले हैं।
आदमी देख कर आइने बदले हैं।।
हर्फ़ वो ही रहे गीत औ’ गाली के।
बात कहने के बस मायने बदले हैं।।
ज़िदगी जोड़ बाकी में ही रह गयी।
इसलिए रिश्तों के फ़ासलें बदलेे हैं।।
जानु,बेबी,हनी वाले इस दौर में।
प्रेम के नाम औ’ चोचले बदले हैं।।
लोकशाही ने ये कर दिखाया यहॉ।
आदमी है वही ओहदे बदले हैं।।
2-
सोचा मिलेगा कुछ नया इस एतबार में।
आकर के फंस गये हैं हम तो लूट मार में।।
जज़्बात भूनाए हैं सारे झूठ बोल कर।
हमको नयी दुनिया दिखाई इश्तिहार में।।
नंगे बदन औ’ चिथड़े फैशन के नाम पर।
क्या क्या नहीं दिखाया हैं हमको बाज़ार में।।
जिससे निभाना जिंदगी का साथ है हमें।
रिश्ता वो खोजने को हम निकले बाज़ार में।।
मालूम हैं हमको भी ज़माने की आदतें।
फिर भी जलायेंगे चिराग़ अंधकार में।।
संदीप सृजन
गज़ल/ आइने बदले हैं/लूट मार में/संदीप सृजन
सुंदर