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बात करने दो/मयंक श्रीवास्तव

और कितने दिन अभी

मेरी जरूरत है

तुम मुझे अनुयायियों से

बात करने दो।

पांव बंध पाए नहीं

मेरे शिथिलता से

हर डगर पर चल रहे

अब भी सुगमता से

साथ मेरा और कितने

दिन निभाएंगी

तुम मुझे परछाइयों से

बात करने दो।

बात करने दो गग्न

धरती हवाओं से

भावनाओं से कलम से

वेदनाओं से

कल तलक देती रही हैं

साथ जो अपना

तुम मुझे तनहाईयों से

बात करने दो।

इस असंगत वक्त का

मैं क्यों विजेता हूँ

हारकर भी जीत का

आनंद लेता हूँ

सांस जिनकी गोद में

लेता रहा अब तक

तुम मुझे कठिनाइयों से

बात करने दो।

फैसला कोई अकेला

ले नहीं सकता

दूर जाने का वचन मैं

दे नहीं सकता

क्या कहेंगे माँ पिता

यह जानता हूँ मैं

तुम मुझे घर भाइयों से

बात करने दो।

 

लेखक

  • मयंक श्रीवास्तव

    मयंक श्रीवास्तव प्रकाशित कृतियाँ- ‘उंगलियां उठती रहें’, ‘ठहरा हुआ समय’, ‘रामवती’ काव्य संग्रह। सम्मान- हरिओम शरण चौबे सम्म्मान (मध्य प्रदेश लेखक संघ), अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान (मधुवन), विद्रोही अलंकरण सम्मान (विद्रोही सृजन पीठ), साहित्य प्रदीप सम्मान (कला मंदिर) वर्ष 1960 से माध्यमिक शिक्षा मण्डल मध्य प्रदेश में विभिन्न पदों पर रहते हुए वर्ष 1999 में सहायक सचिव के पद से सेवा निवृत।

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