अपने घर का हाल देखकर,चुप रहना मत रोना अम्मा ।
सन्नाटे में बिखर गया है,घर का कोना कोना अम्मा ।
खेत और खलिहान बिक गये
इज्जत चाट रही माटी !
अलग अलग चूल्हों में मिलकर
भून रहे सब परिपाटी !
नज़र लगी जैसे इस घर को,या कुछ जादू टोना अम्मा ।
सन्नाटे में बिखर गया है,घर का कोना कोना अम्मा ।
बाँट लिए भैया भाभी ने
बाग बगीचे गलियारे !
अन ब्याही बहना है अब तक
बैठी लज्जा के मारे !
दुख की गठरी इन कंधों पर,जाने कब तक ढोना अम्मा ।
सन्नाटे में बिखर गया है,घर कोना कोना अम्मा ।
छोटे की लग गयी नौकरी
दूर शहर में रहता है !
पश्चिम वाली हवा चली जो
संग उसी के बहता है !
सिर्फ रुपैय्या खाता पीता,या फिर चाँदी सोना अम्मा ।
सन्नाटे में बिखर गया है,घर कोना कोना अम्मा ।
सिसक रहे हैं बर्तन भाड़े
मेज कुर्सियाँ अलमारी !
जो आँगन में तख्त पड़ा था
उस पर आज चली आरी !
तुम होती तो देख न पाती,यों रिश्तों का खोना अम्मा ।
सन्नाटे में बिखर गया है,घर कोना कोना अम्मा ।
—धीरज श्रीवास्तव