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घर का कोना कोना अम्मा/धीरज श्रीवास्तव

अपने घर का हाल देखकर,चुप रहना मत रोना अम्मा ।
सन्नाटे में बिखर गया है,घर का कोना कोना अम्मा ।

खेत और खलिहान बिक गये
इज्जत चाट रही माटी !
अलग अलग चूल्हों में मिलकर
भून रहे सब परिपाटी !

नज़र लगी जैसे इस घर को,या कुछ जादू टोना अम्मा ।
सन्नाटे में बिखर गया है,घर का कोना कोना अम्मा ।

बाँट लिए भैया भाभी ने
बाग बगीचे गलियारे !
अन ब्याही बहना है अब तक
बैठी लज्जा के मारे !

दुख की गठरी इन कंधों पर,जाने कब तक ढोना अम्मा ।
सन्नाटे में बिखर गया है,घर कोना कोना अम्मा ।

छोटे की लग गयी नौकरी
दूर शहर में रहता है !
पश्चिम वाली हवा चली जो
संग उसी के बहता है !

सिर्फ रुपैय्या खाता पीता,या फिर चाँदी सोना अम्मा ।
सन्नाटे में बिखर गया है,घर कोना कोना अम्मा ।

सिसक रहे हैं बर्तन भाड़े
मेज कुर्सियाँ अलमारी !
जो आँगन में तख्त पड़ा था
उस पर आज चली आरी !

तुम होती तो देख न पाती,यों रिश्तों का खोना अम्मा ।
सन्नाटे में बिखर गया है,घर कोना कोना अम्मा ।

—धीरज श्रीवास्तव

लेखक

  • धीरज श्रीवास्तव

    नाम- धीरज श्रीवास्तव शिक्षा- स्नातक संपादन- मीठी सी तल्खियाँ (काव्य संग्रह), नेह के महावर (गीत संग्रह) साहित्य सरोज (उप संपादक) प्रकाशन- मेरे गांव की चिनमुनकी (गीत संग्रह) 'धीरज श्रीवास्तव के गीत( डॉ.सुभाष चंद्र द्वारा संपादित) साझा संग्रह--- अनेक साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित सम्मान--अनेक सम्मान एवं पुरस्कार। संप्रति --- संस्थापक सचिव, साहित्य प्रोत्साहन संस्थान, एवं "साहित्य रागिनी" वेब पत्रिका।

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