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किंतु अधूरा प्यार न देना/अशोक बाजपेयी

किंतु अधूरा प्यार न देना

मन मधुबन में फूल खिला कर

तड़पन की मझधार न देना ।

जी लूंगा मैं याद सहारे ,

किंतु अधूरा प्यार न देना ।

सुमन खोजता रहा जगत में ,

शूलों का प्रतिदान मिला ।

मन का विश्वास हुआ घायल ,

जब अपनों से सम्मान मिला ।

दंश भरा मेरा अंतर्मन ,

किंचित मुझको प्यार न देना ।

मेरे मरुथल जीवन को ,

पलभर की रसधार न देना ।

जल का अर्घ्य दिया जिनको ,

उल्का बनकर वही मिले ।

प्राणों में पीड़ा की सरगम ,

चाह सुमन की शूल मिले ।

शुद्ध प्रेम की इस मूरत को ,

तुम मादक गलहार न देना ।

व्यथित हृदय ,हैं सजल नयन ,

सपनों का संसार न देना ।

मिली उपेक्षा सारे जग से ,

चिर संगिनी मेरी पीड़ाऍ ,

रही उमंगे सदा कुँवारी ।

रोम-रोम जलती ज्वालाऍ ,

तुम्हें समर्पित जीवन नैया ,

अब लहरों की मझधार न देना ।

“सजल “नयन सावन सा बरसें ‘

प्रियवर ऐसा प्यार न देना ।

लेखक

  • नाम -अशोक बाजपेयी " सजल " शैक्षणिक योग्यता - एम. ए . (अंग्रेजी ) , बी.एङ . ,एलएल .बी , पी . जी .डी .सी ' डिप्लोमा इन संस्कृत ( मानव संसाधन मंत्रालय , दिल्ली ) प्रकाशन -मुखरित अंतर्मन काव्य संकलन प्रकाशित , धर्म धारणी धेनु, द ब्रोकेन विंग्स(अंग्रेजी कविताएं प्रेस में ) ' प्रसारण -हरदोई न्यूज़ चैनल G10 से कई बार काव्य पाठ का प्रसारण

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