किंतु अधूरा प्यार न देना
मन मधुबन में फूल खिला कर
तड़पन की मझधार न देना ।
जी लूंगा मैं याद सहारे ,
किंतु अधूरा प्यार न देना ।
सुमन खोजता रहा जगत में ,
शूलों का प्रतिदान मिला ।
मन का विश्वास हुआ घायल ,
जब अपनों से सम्मान मिला ।
दंश भरा मेरा अंतर्मन ,
किंचित मुझको प्यार न देना ।
मेरे मरुथल जीवन को ,
पलभर की रसधार न देना ।
जल का अर्घ्य दिया जिनको ,
उल्का बनकर वही मिले ।
प्राणों में पीड़ा की सरगम ,
चाह सुमन की शूल मिले ।
शुद्ध प्रेम की इस मूरत को ,
तुम मादक गलहार न देना ।
व्यथित हृदय ,हैं सजल नयन ,
सपनों का संसार न देना ।
मिली उपेक्षा सारे जग से ,
चिर संगिनी मेरी पीड़ाऍ ,
रही उमंगे सदा कुँवारी ।
रोम-रोम जलती ज्वालाऍ ,
तुम्हें समर्पित जीवन नैया ,
अब लहरों की मझधार न देना ।
“सजल “नयन सावन सा बरसें ‘
प्रियवर ऐसा प्यार न देना ।
लेखक
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नाम -अशोक बाजपेयी " सजल " शैक्षणिक योग्यता - एम. ए . (अंग्रेजी ) , बी.एङ . ,एलएल .बी , पी . जी .डी .सी ' डिप्लोमा इन संस्कृत ( मानव संसाधन मंत्रालय , दिल्ली ) प्रकाशन -मुखरित अंतर्मन काव्य संकलन प्रकाशित , धर्म धारणी धेनु, द ब्रोकेन विंग्स(अंग्रेजी कविताएं प्रेस में ) ' प्रसारण -हरदोई न्यूज़ चैनल G10 से कई बार काव्य पाठ का प्रसारण
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