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सौंप जो मुझको गये थे/राहुल द्विवेदी स्मित’

सौंप जो मुझको गये थे, क्षण कभी अनुराग के तुम
मैं उन्हीं सुधियों के’ कोमल, गीत गाता चल रहा हूँ
जब कभी विश्वास डोले, मीत मुड़कर देख लेना।।

कब भला आसान होता, आग साँसों की बुझाना।
सागरों का नीर खारा, नित्य पीना, मुस्कुराना।
किन्तु तुम लेकर गये थे, जो वचन उसके लिए ही,
कहकहों में आँसुओं को, मैं छिपाता चल रहा हूँ
जब कभी विश्वास डोले, मीत मुड़कर देख लेना।।

आँच पाकर कौन होगा, वृक्ष जो मुरझा न जाये।
ओस के तपते कणों से, कोपलें कैसे बचाये।
गर्भ में ज्वालामुखी है, और बहता सुर्ख लावा,
पर सतह पर हिम नदी सा, गुनगुनाता चल रहा हूँ
जब कभी विश्वास डोले, मीत मुड़कर देख लेना।।

कब बिना अनुमति तुम्हारी, फूल उपवन में खिला है।
प्रेरणा हो या हताशा, जो मिला तुमसे मिला है।
बुझ गया होता प्रणय आराधना उपरांत, लेकिन
दीप हूँ संकल्प का मैं, तम मिटाता चल रहा हूँ
जब कभी विश्वास डोले, मीत मुड़कर देख लेना।।

राहुल द्विवेदी ‘स्मित’

लेखक

  • राहुल द्विवेदी 'स्मित'

    राहुल द्विवेदी ‘स्मित’ शिक्षा -- एम.ए.,बी.एड. प्रकाशन एवं प्रसारण-- गीत संकलन: पुनः युधिष्ठिर छला गया है अनेक साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं, ई- पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन एवं दूरदर्शन पर रचनाओं का प्रसारण। सम्मान- हरिवंशराय बच्चन युवा गीतकार सम्मान-2021 उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान विशेष-- उद्घोषक, आकाशवाणी लखनऊ (लोकायन,खेती किसानी) एवं रेडियो जंक्शन

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