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विवादों का शहर/मयंक श्रीवास्तव

 

प्रश्न हल करता नहीं है

यह विवादों का शहर।

यह शहर अब नित तनावों

का कहर ढाने लगा

चैन घर का छीन कर

बाजार हरषाने लगा

यह हमारे तंत्र के

लंगड़े इरादों का शहर।

इस शहर का आदमी ही

आदमी को बांटता

वक्त मिलते ही कपट की

कैंचियों से काटता

हाँ कभी था प्रेम का

अब है फसादों का शहर।

दिल सियासत से लगाकर

नित्य ठगती है हवा

रोग ऐसा सोंपती

जिसकी नहीं मिलती दवा

जो कभी चुकते नहीं

ऐसे तगादों का शहर।

मगरमच्छों की जमावट

लोकतंत्री ताल में

फंस रही है खुद ब खुद

मछली नियति के जाल में

जो कभी पूरी न होतीं

उन मियादों का शहर।

लेखक

  • मयंक श्रीवास्तव

    मयंक श्रीवास्तव प्रकाशित कृतियाँ- ‘उंगलियां उठती रहें’, ‘ठहरा हुआ समय’, ‘रामवती’ काव्य संग्रह। सम्मान- हरिओम शरण चौबे सम्म्मान (मध्य प्रदेश लेखक संघ), अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान (मधुवन), विद्रोही अलंकरण सम्मान (विद्रोही सृजन पीठ), साहित्य प्रदीप सम्मान (कला मंदिर) वर्ष 1960 से माध्यमिक शिक्षा मण्डल मध्य प्रदेश में विभिन्न पदों पर रहते हुए वर्ष 1999 में सहायक सचिव के पद से सेवा निवृत।

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