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फिर वही किस्सा सुनाना चाहता हूँ/सुरजीत मान जलईया सिंह

फिर वही किस्सा सुनाना चाहता हूँ

फिर वही किस्सा सुनाना चाहता हूँ
माँ तुझे मैं गुन-गुनाना चाहता हूँ

कल सिरहाने जो तुम्हारा हाथ था
उसको फिर तकिया बनाना चाहता हूँ

फिर उठा ले गोद में अपनी मुझे
दुनियां – दारी भूल जाना चाहता हूँ

इस शहर ने छीन ली बरकत मेरी
मैं सभी को ये बताना चाहता हूँ

सर छुपाने को जगह तक ना मिली
आँख के आँसू छुपाना चाहता हूँ

छोड कर जन्नत कहाँ हम आ गये
फिर उसी मन्दिर में सजदा चाहता हूँ

जिन्दगी थकने लगी है अब मेरी
फिर तुम्हारे पास आना चाहता हूँ

पाँव में छाले किये इस उम्र ने
फिर वही बचपन सुहाना चाहता हूँ…

लेखक

  • सुरजीत मान जलईया सिंह पिता का नाम- कर्मवीर सिंह माता का नाम- राजेन्द्री देवी पता- गाँव-नगला नत्थू, पोस्ट-नौगाँव, तहसील-सादाबाद, जिला-हाथरस, उत्तर प्रदेश जन्मतिथि-28/04/1988 शिक्षा- एम. ए.(हिन्दी) (पत्रकारिता), एल. एल. बी., बी. एड. प्रकाशित पुस्तकें- माँ का आँचल व आदरांजलि (दोनों काव्य कृति) प्रकाशन- सदी के मशहूर गज़लकार में रचनाएँ सम्मलित कविता के प्रमुख हस्ताक्षर में रचनाएँ सम्मलित आधुनिक भारत के गज़लकार में रचनाएँ सम्मलित मीठी सी तल्खियाँ भाग-2 में रचनाएँ प्रकाशित नेह के महावर में रचनाएँ सम्मलित आकाशवाणी व एफ एम रेडियो पर काव्यपाठ भारत के विभिन्न साहित्यिक संस्थानों से सम्मान एवं पुरस्कार भारत व अन्तराष्ट्रीय समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित एवं कई साझा काव्य संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित।

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फिर वही किस्सा सुनाना चाहता हूँ/सुरजीत मान जलईया सिंह

एक विचार “फिर वही किस्सा सुनाना चाहता हूँ/सुरजीत मान जलईया सिंह

  1. अशोक बाजपेयी " सजल " कहते हैं:

    प्रस्तुत गीत ” फिर वही किस्सा सुनाना चाहता हूँ ” में माँ के प्रति अलौकिक प्रेम का प्राकट्य है । हृदय स्पर्शी भावबोध ‘ समर्पण एवं श्रद्घा बरबस माँ के प्रति स्नेह एवं प्रेम का संचार करती है । बधाई!

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